सुनो ज़रा ...कहो ज़रा ...
सुनो..... कह दो न !!
वक़्त से .....
टूटी हुई , यादों की जो रात है !
इस रात में ,
चाँद पे, काला सा वो जो दाग़ है!
तुम कहो तो
उस दाग़ को
मैं मिटा दूँ !
चाँद को रोशनी का
ऊबटन लगा दूँ ?
धो पोंछ कर
आसमां पे
फिर सज़ा दूँ !
कहो ज़रा !
सुनो ज़रा .. कह दो न !
आँखो की,
झील में, भीगें हुए से कुछ ख़्वाब है !इन ख़्वाबों की,
नस-नस में, बजने लगा इक साज़ है !
तुम कहो तो
इस साज़ पे,
धुन बना लूँ ?
ख़्वाहिशों की बंदिशो में
सुर पिरो कर
गुनगुना लूँ ?
कहो ज़रा ...
सुनो ज़रा ... कह दो न !
जिस्मों की,
ख़ुशबू के, खिले हुए जो गुलाब है !
इस ..हवा में,
घुला ...इश्क़, रंग सुरख़ाब है
तुम कहो तो
इश्क़-रंग, मैं
धानी बना लूँ !
अपने इश्क़ की
नई कोई,
कहानी बना लूँ ?
कहो ज़रा ...
सुनो ज़रा ... कह दो न
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