इस शहर से कहो
कि थम जाए ..रुक जाय ...
अभी कि अभी
कि तनहा सफ़र पे चली हूँ
इस शहर से मैं वाक़िफ़ नहीं ....
....
सोचती हूँ कि हर मोड़ को जान लूँ
बाशिंदों जो है यहाँ के मैं पहचान लूँ
तो कुछ देर के वास्ते ही सही
ऐ शहर तुम ...
रुक जाओ ...थम जाओ
अभी हाँ अभी
कच्ची सी पगडंडियाँ है शहर की
और कितनी कच्ची डगर
कच्चे से पक्के से है जो मकाँ ये
ढूँढूँ उनमें अपना मैं घर
तो कुछ देर के वास्ते ही सही
ऐ शहर तुम ...
रुक जाओ ...थम जाओ
अभी हाँ अभी
इन उजले अंधेरों में मैं ढूँढती हूँ
उम्मीदों की कोई सहर
कि हर दिन हुआ एक सदी सा
हर लम्हा जैसे पहर ....
तो कुछ देर के वास्ते ही सही
ऐ शहर तुम ...
रुक जाओ ...थम जाओ
अभी हाँ अभी
क्या फ़ासले है क्यूँ फ़ासले है
कि कटते नहीं कुछ सफ़र
जिस्मों में है रूह के जो परिंदे
ढूँढ़े वो उड़ने को पर
तो कुछ देर के वास्ते ही सही
ऐ शहर तुम ...
रुक जाओ ...थम जाओ
अभी हाँ अभी
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