बाद तेरे जाने के, दरवाज़े छत रोए नहीं
लौट कर आओगे तुम, सोच ये सोए नहीं
टूट गया वादों का धागा,आस मोती बिखर गए
पीड़ देख माला की, ख़्वाहिश मोती पिरोए नहीं
भीड़ में तनहा रही, मुझमें मुझसो की भीड़ थी
उग आए कुछ ऐसे चेहरे जो कभी बोए नहीं
सूद बदन चुक गया, रब की जबसे मेहर हुई
रूह से कह दे कोई गठरी पाप ढोए नहीं
लौट कर आओगे तुम, सोच ये सोए नहीं
टूट गया वादों का धागा,आस मोती बिखर गए
पीड़ देख माला की, ख़्वाहिश मोती पिरोए नहीं
भीड़ में तनहा रही, मुझमें मुझसो की भीड़ थी
उग आए कुछ ऐसे चेहरे जो कभी बोए नहीं
सूद बदन चुक गया, रब की जबसे मेहर हुई
रूह से कह दे कोई गठरी पाप ढोए नहीं
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