8 July 2018

यादें फफूँद सी होती है

यादें शायद 
फफूँद होती है 

कि देखा  है मैंने 
यादों के फफूँद 
कहीं भी 
कभी भी उग आते है 
वहाँ भी जहाँ 
दफ़्न हो अपना प्रिय कोई
 वहाँ भी जहाँ  से 
गुज़रा है वो 
और वहाँ भी 
जहाँ हमसाया था वो प्रिय 


इन फफूँदो के 
कई स्वरूप होते है 
होते है 
कूकुरमुत्ते से  
सफ़ेद अंडों से 
या फिर 
ब्रेड में उग आए 
काली हरी फफूँद
कई आकार लिए होते है ये 
बड़ी छोटी छतरी से 
ये सफ़ेद अंडों से 


कई दफे ये 
कुकरमुत्ते सी यादें 
जान भी लेती है
और कितने दफे 
जीवन दान भी !

ये उग आती है 
विरह से सिले दरवाज़ों 
खिड़कियों, पलंगो 
घरों में जूतों में 
कपड़ों में 
हर जगह 
हर कहीं !
ये अक्सर उग आती है 
जहाँ होती है 
विरानियों और तनहाइयों !

और फिर 
एक बदबू 
सड़ते रिश्तों की 
कड़वी यादों की 
ज़हरीले अहसासों की 
फैलने लगती है 
और  वो घर 
शहर रहगुज़र 
हो जाता है 
खंडहर 
जर्र जर्र टूटा खंडहर !!

आते है तब 
कुछ सैलानी ,टुरिस्ट 
जो हमारे 
वजूद के इन खंडहरों में 
अपनी सेल्फ़ी ले 
पोस्ट करते है 
साथ 
उन फफूँद बनी यादों का 
मशरूम उगे खंडहरों का 
जहाँ 
शायद 
कभी कोई ख़ूबसूरत 
जहाँ बसा करता था !!

हाँ ... यादें 

फफूँद सी ही तो होती है !!

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