8 July 2018

अतीत की काई

ये जो अतीत की काई 
मेरे वजूद पे जमी है
अक्सर फिसल जाता है 
इसपे मेरा वर्तमान !
बार बार गिरने से 
खंडित होने लगा है
मेरा वर्तमान..
अस्थि पंजर 
हिल से गए है..
दिमाग़ जैसे सुन्न!
अपाहिज सा,
यही वर्तमान ,कल 
अतीत की काई में 
परिवर्तित हो जाएगा,
और आने वाला  कल,

एक जर्जर भविष्य में !

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