ये जो अतीत की काई
मेरे वजूद पे जमी है
अक्सर फिसल जाता है
इसपे मेरा वर्तमान !
बार बार गिरने से
खंडित होने लगा है
मेरा वर्तमान..
अस्थि पंजर
हिल से गए है..
औ दिमाग़ जैसे सुन्न!
अपाहिज सा,
यही वर्तमान ,कल
अतीत की काई में
परिवर्तित हो जाएगा,
और आने वाला कल,
एक जर्जर भविष्य में !
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