2 July 2018

कुछ तो कहो न ज़िंदगी

कुछ तो कहो ,ज़िंदगी ...
चुप यूँ रहो , ज़िंदगी ...

तितली थी मैं,उड़ गई 
राह थी कोई , मुड़ गई 
यूँ ख़ुद से ही रूठ कर 
ज़िद तुम करों , ज़िंदगी ...

आँख का काजल रहूँ 
आज मैं हूँ, कल रहूँ,
डोर, पतंग से टूट कर 
उड़ती फिरो , ज़िंदगी 

टूट टूट गिर जाऊँ मैं 
शनै शनै मर जाऊँ मैं 
अमरबेल सी हर शाख़ पर 
लिपटीं फिरों , ज़िंदगी 




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