कुछ तो कहो न,ज़िंदगी ...
चुप यूँ रहो न , ज़िंदगी ...
तितली थी मैं,उड़ गई
राह थी कोई , मुड़ गई
यूँ ख़ुद से ही रूठ कर
ज़िद तुम करों न, ज़िंदगी ...
आँख का काजल न रहूँ
आज मैं हूँ, कल न रहूँ,
डोर, पतंग से टूट कर
उड़ती फिरो न, ज़िंदगी
टूट टूट गिर जाऊँ मैं
शनै शनै मर जाऊँ मैं
अमरबेल सी हर शाख़ पर
लिपटीं फिरों न, ज़िंदगी
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