कुछ खलायें कभी नहीं भरीं .... ख़ाली ही रही ...... तेरे बिना ! वो इंतज़ार करती रही है, सदियों से और करती रहेंगी ...... तमाम उम्र और शायद उसके बाद भी ...... कि मैं .... मैं नहीं हूँ तेरे बिना !
तू सफ़ा हाशिया मैं
तू रदीफ काफ़िया मैं
ग़ज़ल अधूरी तेरे बिना
हाँ .....कुछ नहीं मैं तेरे बिना ...
ख़्वाहिशें बेताल सी
काँधे पे लादे हुए
बस यूँ ही चलती रही हूँ
उम्र भर मैं... तेरे बिना
ज़िंदगी सिगार सी
साँसों का धुआँ लिए
बस यूँ ही जलती रही हूँ
उम्र भर मैं.... तेरे बिना ...
रवायतें थी खाप सी
रिश्तों का मजमा लिए
ख़ुद को यूँ छलती रही हूँ
उम्र भर मैं.... तेरे बिना ....
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