Boy-
है इल्तज़ा ....कुछ तो बता ?
ऐ ज़िंदगी मुझे क्यूँ दी है सज़ा ?
गुज़र गया था जो पल, है ठहरा हुआ
कुछ भी सुना न मैंने, जो तूने कहा
है इल्तज़ा ....कुछ तो बता ...
Girl -
मैं ज़िंदगी यहाँ पे ठहरी हुई
गूँगी हुई मै .....बहरी हुई ...
चाहा तुझे है मैंने हाँ ... बेपनाह
पर हूँ मैं ऐसी मंज़िल जिसकी न राह ....
Boy-
कोई हो सागर मेरा
होगा कहीं तो सवेरा
काली सी स्याही वाली
ख़त्म न होने वाली
रातों की क्या है रज़ा ...
है इल्तज़ा ....कुछ तो बता ?
Girl-
पानी का रंग न है जिस्म कोई
रातें है हिज़्र की ज्यूँ किश्त कोई
सज़दा किया है मैंने ,की है अता
दे दे मुझे खुदा या दे दे क़ज़ा
Boy -है इल्तज़ा ....कुछ तो बता ?
Girl - दे दे खुदा मुझे तू या दे क़ज़ा
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