फ़ोन रखते ही रवि अचानक ज़ोर ज़ोर से हँसने लगा, रितेश भौचक्का सा रवि को देखने लगा। रेस्ट्रॉन्ट में बैठे सभी लोग मुड़ कर दोनों को देखने लगे। और फिर अगले ही पल रवि आक्रमक सा हो गया और मेज़ पर रखी सभी चीज़ो फेकने लगा। देखते ही देखते मैनेजर और कुछ वेटर दौड़े आये और उन्होने रवि को पकड़ लिया । रवि चीखता रहा और खुद को छुड़ाने की कोशिश करता रहा।
रितेश को जैसे काठ मार गया। उसने रवि को कभी इस तरह व्यव्हार करते नहीं देखा था। जैसे तैसे रितेश ने खुद को संभाला। रितेश ने रवि को पकड़ा और रेस्त्रां के बाहर ले गया। रवि का चीखना चिल्लाना कम नहीं हुआ- मानो उसे कोई दौरा सा पड़ गया था।
चूँकि ख़ासा तमाशा हो गया था, मैनेजर पीछे पीछे आया और गुस्से में रितेश से झगड़ने लगा। रवि को एक तरफ खड़ा कर, रितेश ने मैनेजर से माफ़ी मांगी और नुकसान की भरपाई की फिर में कार में बिठा अपने फ्लैट की ओर चल पड़ा।
रवि और रितेश पिछले पांच सालों से एक ही कंपनी में काम कर रहे थे। दोनों में अच्छी दोस्ती हो गई थी। चूँकि दोनों की शादी नहीं हुई थी अतः कंपनी के अपार्टमेंट के एक फ्लैट में साथ रहा करते थे। रवि, जहाँ मितभाषी था, रितेश इसके विपरीत बड़ा ही हॅसमुख,और वाचाल था ।
हालाँकि रितेश खाना बनाना जानता था मगर रवि की ज़िद थी कि रितेश को रवि की गैरमौजूदगी मे ही खाना बनाना होगा– ये बात रितेश को बहुत अटपटी लगती थी मगर कभी तवज्जो नही दी कभी इस बात को ज़्यादा. उन्होने इसका भी हल निकाल लिया था की लंच बाहर होगा और शाम का खाना बनाने के लिए एक बाई आएगी .
इत्तेफाकन आज रवि का जन्मदिन भी था इसलिए उन्होंने ऑफिस से दूर सुभाष ब्रिज के पास श्री गोरस रेस्त्रां को रात के भोजन के लिए चुना था । यहाँ का कठियावाड़ी बड़ा मशहूर था खास तौर पे बाजरे की रोटी और बैगन का भर्ता, सफ़ेद मक्खन और साथ में गौड़ पापड़ी बेहद पसंद था रवि को।
बस थाली परोसी ही थी की रवि के मोबाइल पे एक कॉल आया , हमेशा की तरह फ़ोन पे सुनता रहा रवि और उसके चेहरे के भाव भंगिमा बदलते रहे। इस सब से बेखबर रितेश ने खाना शुरू कर भी दिया था और फिर अचानक ये सब हुआ था।
रास्ते भर रवि का चेहरा तमतमाया रहा। इतने सालो में रितेश समझ चुका था कि जब तक रवि खुद न चाहे, उसके लाख पूछने पर रवि कोई जवाब नही देगा। रितेश भी रास्ते भर चुप रहा। चाबी खोलकर फ्लैट में घुसते ही रवि ने अपने आप को कमरे में बंद कर लिया। रितेश इंतज़ार करता रहा, अपने कमरे में चुपचाप टीवी देखता रहा, जानता था कुछ भी पूछना व्यर्थ होगा।
सुबह हुई तो रितेश को लगा अब शायद रवि सामान्य हो ही गया होगा । बार बार दरवाजा पीटने पर भी रवि ने दरवाजा नही खोला । आख़िरकार घबराकर उसने आनन फानन मे अपने ऑफीस मे फोन लगाया. थोड़ी ही देर में उसके बॉस सहित कई और सहकर्मचारी आ गये . कई बार दरवाजा खटखटाने पर दरवाजा नहीं खुला तो दरवाजा तोड़ देने पे सहमति बनी. अंदर कमरे में रवि ने रो रो कर अपनी आँखे रो रो कर सुजा ली थी, उसके बाल बेतरतीब से और गालो पे आंसुओ से बनी लकीरों से भरा हुआ !
मगर रवि खामोश रहा , बस उसके आँखो के पोरों से आँसू बहते रहे मगर चेहरा भाव विहीन.
अंतः रवि के बॉस ने रितेश से कहा – “रवि needs rest, रितेश तुम ऐसा करो इसे इसके घर जूनागढ़ ले जाओ.”
“नही मैं जूनागढ़ नही जाऊंगा ” – रवि चिल्लाया
चूँकि इस समस्या का कोई उकेल नहीं निकला तो सभी स्टाफ धीरे धीरे लौट गए। वक़्त गुज़रता रहा रवि अब भी सुन्न सा था।
कुछ देर बाद रितेश ने जैसे ही रवि के कंधे पर हाथ रखा तो वो बच्चो की तरह फफक फफक कर रो पड़ा । रितेश ने भी कोई प्रयत्न नहीं किया उसे चुप कराने का. शायद बरसो की चुप्पी, अबोली ख़ामोशी, वो वेदना, वो टीस, वो पीड़ा आँसुओ के साथ बाहर निकल रही थे।
आखिर जब रवि के आँसू सूख गए और सिसकना बंद हुआ तब रितेश ने पूछा -" किसका फ़ोन था? मैंने इतने साल से तुझे कभी इतना अजीब बर्ताव करते नहीं देखा ! तेरा ऐसा स्वरुप नहीं देखा। एकबारगी को तो मैं डर ही गया था। ?,रवि बोल न" रितेश ने पूछा
रवि चुप ही रहा कुछ नही बोला .
थक हार कर रितेश ने अपने कमरे से रवि की बहन संजना को फोन लगाया और सब बताया. रितेश ने कहा – दीदी पता नही ऐसा तो किसका फोन था, जबसे फोन रखा है वियर्ड सा बिहेव कर रहा है , रो रहा है , कुछ बोलता भी नही”
" रितेश वो नाना जी का फ़ोन था” संजना ने कहा
"तो ऐसा क्या कह दिया नाना जी ने ? बताओ न दीदी !"
" यही कि हमारे पापा गुज़र गए " संजना की खाली सी आवाज़ आई
" क्या ??? पर उसने तो कहा था आपके पापा है ही नहीं !! आप दोनो को तो आपके नाना नानी ने पाला है क्यूंकी मम्मी पापा तो बचपन में ही गुज़र गए थे न ??" रितेश विस्फारित नेत्र से संजना की बात सुन रहा था.
तभी रवि के कमरे से अचानक कुछ समान गिरने की आवाज़ आई
रितेश ने फोन काटते हुए कहा –“ दीदी आप जल्दी आइए मुझसे रवि संभल नही रहा है”
संजना बोली – बस एक घंटा और सम्भालो , मुझे आनंद से अहमदाबाद पहुचने मे इतना टाइम तो लग ही जाएगा.
रितेश रवि के कमरे की ओर भगा
रवि सर पटक पटक कर रोए जा रहा था और बड़बड़ा रहा था
" वो तो मेरे लिए आज से २२ साल पहले ही मर गए थे, ये तो आज उनका शरीर मरा है । अच्छा ही हुआ कि वो मर गए ! उनको तो बरसो पहले मर जाना चाहिए था ! अफ़सोस इस बात का है कि वो मेरे जनमदिन के दिन मरे! आज ही के दिन मरना था आपको ??? " रवि ज़ोर ज़ोर से रोने लगा
“I hate you papa ,..... I have always hated you my life !!” रवि के चेहरे पे घृणा के भाव उभर आये थे।
रितेश सकते मे था, बोला “ सुन रवि , संजना दीदी आ रही है. प्लीज़ कंट्रोल कर . देख सब ठीक होगा”
“दी आ रही है , संजना दी आ रही है .... हन वो सब ठीक कर देंगी ...” रवि अचानक शांत हो गया " जब दी आये तो मुझे उठा देना , बहुत थक गया हूँ मैं ," रवि ने कहा।
बहुत मुश्किल दौर था रितेश के लिए भी .... कभी सोचा ही नही था ऐसे हालातों से दो चार करना होगा.
पौना घंटे बाद डोरबेल बजते ही वो दरवाजे की ओर लपका – संजना दी और जीजाजी सामने खड़े थे.
संजना ने अंदर आते साथ कहा – सॉरी रितेश ... रवि की वजह से तुम्हे इतनी परेशानी होगी मैं नही जानती थी .
रितेश ने बताया की रवि क्या क्या बड़बड़ा रहा था .
संजना बोली – “रितेश रवि ने वो भयानक मंज़र देखा है बचपन मे जिसे वो कभी भूल ही नही पाया . वो गुमसुम हो गया तब से। मैं बड़ी थी इसलिए संभल गई!”
“ऐसा तो क्या हुआ उसके बचपन मे? अपने पिता से कोई इतनी नफ़रत करता है भला ? और उसने तो कहा था की आपके मम्मी पापा दोनो बचपन मे मर चुके थे !!” रितेश की उत्सुकता अपने चरम पर थी
संजन ने लंबी साँस भरी और कहा “ बहुत लंबी कहानी है , कहानी मम्मी से जुडी है।
बड़ी प्यारी थी , गोरी सी, भूरी भूरी सी आँखो वाली . नाना नानी की लाड़ली बेटी। नाना नानी ने उन्हें बड़े नाज़ो से पाला था । नाना कहते है हमारी मम्मी बहुत लकी थी उनके लिए।"
"और हमारे पापा उसी शहर में म्युनिसिपल कारपोरेशन में काम करते हमारे समाज के पहले सिविल इंजीनियर। चूँकि घर परिवार भी अच्छा था सो नाना को भा गए पापा। उन्होंने सोचा कि बेटी पास ही रहेगी, नज़रों के सामने । फिर तो मम्मी पापा की शादी हो गई। और अगले चार साल में तो मैं और रवि आ गए। रवि मुझसे तीन साल छोटा था। "
दीदी कहती रही, "घर अगले मोहल्ले में होने के कारण मम्मी अकसर नाना के घर जाया करती और ये बात पापा को नागवार गुजरती। बस पापा शराब पीने लगे मम्मी को पापा का पीना बिलकुल पसंद नहीं था। वो मना करती और पापा गाली गलौच करते। मम्मी चुपचाप सह जाती। अब तक तो मैं सात साल की और रवि चार साल का हो चूका था।"
"और अब तो पापा मम्मी पे हाथ भी उठाने लगे थे। मैं और रवि चुपचाप माँ को मार खाते देखते और सहमे रहते। ऐसे बाते कहाँ छुपती है, नाना तक बात पहुंच गई थी!
-"पड़ोसियों ने नाना को खबर दी, अस्पताल ले गए मम्मी को । मम्मी डॉक्टर के सामने गिड़गिड़ाती रही -" मुझे बचा लो, बचा लो ! " और डॉक्टर्स मम्मी को नही बच पाए । "
-"फिर तो मुझे और रवि को नाना अपने घर ले आये। हम वहीं पले बढ़े, कभी कमी नहीं होने दी मम्मी पापा की। मगर रवि कभी रोया नहीं फिर उस दिन के बाद - चुप्प हो गया। हमेशा के लिए गुमसुम !"
-"हमारे पापा ने एक साल बाद फिर से शादी कर ली। सुना था उनकी दूसरी पत्नी भी मम्मी की तरह जल के मर गई। उनका पीना बदस्तूर जारी रहा। उन्हे कभी कोई फरक़ नही पड़ा दो-दो पत्नियों की मौत के बाद। फिर तीसरे साल मे तीसरी शादी !! सुना है उनके दो बच्चे और बच्चे है । शहर वही था , समाज वही। कई शादियों और कार्यक्रमों में दिखाई दे जाते - अपनी तीसरी पत्नी और बच्चो के साथ। नाना ने हमें दूर ही रखा उनसे इतने सालो तक । "
-"और आज दोपहर को पापा को हार्ट अटैक आया और वो गुजर गए! उनकी तीसरी पत्नी का नाना पे फ़ोन था कि पापा की आखरी ख्वाहिश थी कि उनका बड़ा बेटा यानि रवि उनको मुखाग्नि दे!! नाना उसे पापा के अंतिम संस्कार के लिए बुला रहे है। उनका कहना है की रवि अब पापा को माफ़ कर दे , आखिरकार वो एक पिता थे !"
रितेश को अब समझ आया की रवि क्यूँ आग से दूर भागता रहा है!!
संजना और जीजा जी रवि के कमरे की मे गये.
“रवि, उठ !!! मैं आई हूँ – तेरी दीदी !” संजना ने प्यार से रवि के सर पे हाथ फेरते हुए कहा।
“दीदी ......”
रवि उठा और संजना से लिपट कर ज़ोर ज़ोर से रोने लगा। 22 बरस का दर्द, टीस, पीड़ा, आक्रोश, चुप्पी, जैसे सभी के सब्र का बाँध टूट गया था। दोनो भाई बहन एक दूसरे से लिपट कर देर तक रोते रहे।
थोड़ी देर बाद संजना और रवि शांत हो गये। वो आँसुओ का सैलाब अपने साथ सारे दर्द बहा ले गया था.
शाम घिर आई थी। रितेश ने उठ कर खिड़की खोल दी। आसमान एकदम साफ़ था - जैसे बारिश के बाद धुला आसमान। तारे और चाँद साफ़ दिखाई दे रहे थे।
" रवि , तू अपने लिए न सही , पापा के लिए न सही , माँ के लिए चल। आखिर तुझमें और उनमें कोई फ़र्क़ तो होना चाहिए न !!" संजना ने कहा।
"नही दीदी!! मैं उन्हें मुखाग्नि नहीं दूंगा। He doesn't deserve our sympathy!! हम जीते जी उनके लिए तरसे है - उन्हें मौत के बाद तरसने दो !! "
रितेश को जैसे काठ मार गया। उसने रवि को कभी इस तरह व्यव्हार करते नहीं देखा था। जैसे तैसे रितेश ने खुद को संभाला। रितेश ने रवि को पकड़ा और रेस्त्रां के बाहर ले गया। रवि का चीखना चिल्लाना कम नहीं हुआ- मानो उसे कोई दौरा सा पड़ गया था।
चूँकि ख़ासा तमाशा हो गया था, मैनेजर पीछे पीछे आया और गुस्से में रितेश से झगड़ने लगा। रवि को एक तरफ खड़ा कर, रितेश ने मैनेजर से माफ़ी मांगी और नुकसान की भरपाई की फिर में कार में बिठा अपने फ्लैट की ओर चल पड़ा।
रवि और रितेश पिछले पांच सालों से एक ही कंपनी में काम कर रहे थे। दोनों में अच्छी दोस्ती हो गई थी। चूँकि दोनों की शादी नहीं हुई थी अतः कंपनी के अपार्टमेंट के एक फ्लैट में साथ रहा करते थे। रवि, जहाँ मितभाषी था, रितेश इसके विपरीत बड़ा ही हॅसमुख,और वाचाल था ।
हालाँकि रितेश खाना बनाना जानता था मगर रवि की ज़िद थी कि रितेश को रवि की गैरमौजूदगी मे ही खाना बनाना होगा– ये बात रितेश को बहुत अटपटी लगती थी मगर कभी तवज्जो नही दी कभी इस बात को ज़्यादा. उन्होने इसका भी हल निकाल लिया था की लंच बाहर होगा और शाम का खाना बनाने के लिए एक बाई आएगी .
इत्तेफाकन आज रवि का जन्मदिन भी था इसलिए उन्होंने ऑफिस से दूर सुभाष ब्रिज के पास श्री गोरस रेस्त्रां को रात के भोजन के लिए चुना था । यहाँ का कठियावाड़ी बड़ा मशहूर था खास तौर पे बाजरे की रोटी और बैगन का भर्ता, सफ़ेद मक्खन और साथ में गौड़ पापड़ी बेहद पसंद था रवि को।
बस थाली परोसी ही थी की रवि के मोबाइल पे एक कॉल आया , हमेशा की तरह फ़ोन पे सुनता रहा रवि और उसके चेहरे के भाव भंगिमा बदलते रहे। इस सब से बेखबर रितेश ने खाना शुरू कर भी दिया था और फिर अचानक ये सब हुआ था।
रास्ते भर रवि का चेहरा तमतमाया रहा। इतने सालो में रितेश समझ चुका था कि जब तक रवि खुद न चाहे, उसके लाख पूछने पर रवि कोई जवाब नही देगा। रितेश भी रास्ते भर चुप रहा। चाबी खोलकर फ्लैट में घुसते ही रवि ने अपने आप को कमरे में बंद कर लिया। रितेश इंतज़ार करता रहा, अपने कमरे में चुपचाप टीवी देखता रहा, जानता था कुछ भी पूछना व्यर्थ होगा।
सुबह हुई तो रितेश को लगा अब शायद रवि सामान्य हो ही गया होगा । बार बार दरवाजा पीटने पर भी रवि ने दरवाजा नही खोला । आख़िरकार घबराकर उसने आनन फानन मे अपने ऑफीस मे फोन लगाया. थोड़ी ही देर में उसके बॉस सहित कई और सहकर्मचारी आ गये . कई बार दरवाजा खटखटाने पर दरवाजा नहीं खुला तो दरवाजा तोड़ देने पे सहमति बनी. अंदर कमरे में रवि ने रो रो कर अपनी आँखे रो रो कर सुजा ली थी, उसके बाल बेतरतीब से और गालो पे आंसुओ से बनी लकीरों से भरा हुआ !
मगर रवि खामोश रहा , बस उसके आँखो के पोरों से आँसू बहते रहे मगर चेहरा भाव विहीन.
अंतः रवि के बॉस ने रितेश से कहा – “रवि needs rest, रितेश तुम ऐसा करो इसे इसके घर जूनागढ़ ले जाओ.”
“नही मैं जूनागढ़ नही जाऊंगा ” – रवि चिल्लाया
चूँकि इस समस्या का कोई उकेल नहीं निकला तो सभी स्टाफ धीरे धीरे लौट गए। वक़्त गुज़रता रहा रवि अब भी सुन्न सा था।
कुछ देर बाद रितेश ने जैसे ही रवि के कंधे पर हाथ रखा तो वो बच्चो की तरह फफक फफक कर रो पड़ा । रितेश ने भी कोई प्रयत्न नहीं किया उसे चुप कराने का. शायद बरसो की चुप्पी, अबोली ख़ामोशी, वो वेदना, वो टीस, वो पीड़ा आँसुओ के साथ बाहर निकल रही थे।
आखिर जब रवि के आँसू सूख गए और सिसकना बंद हुआ तब रितेश ने पूछा -" किसका फ़ोन था? मैंने इतने साल से तुझे कभी इतना अजीब बर्ताव करते नहीं देखा ! तेरा ऐसा स्वरुप नहीं देखा। एकबारगी को तो मैं डर ही गया था। ?,रवि बोल न" रितेश ने पूछा
रवि चुप ही रहा कुछ नही बोला .
थक हार कर रितेश ने अपने कमरे से रवि की बहन संजना को फोन लगाया और सब बताया. रितेश ने कहा – दीदी पता नही ऐसा तो किसका फोन था, जबसे फोन रखा है वियर्ड सा बिहेव कर रहा है , रो रहा है , कुछ बोलता भी नही”
" रितेश वो नाना जी का फ़ोन था” संजना ने कहा
"तो ऐसा क्या कह दिया नाना जी ने ? बताओ न दीदी !"
" यही कि हमारे पापा गुज़र गए " संजना की खाली सी आवाज़ आई
" क्या ??? पर उसने तो कहा था आपके पापा है ही नहीं !! आप दोनो को तो आपके नाना नानी ने पाला है क्यूंकी मम्मी पापा तो बचपन में ही गुज़र गए थे न ??" रितेश विस्फारित नेत्र से संजना की बात सुन रहा था.
तभी रवि के कमरे से अचानक कुछ समान गिरने की आवाज़ आई
रितेश ने फोन काटते हुए कहा –“ दीदी आप जल्दी आइए मुझसे रवि संभल नही रहा है”
संजना बोली – बस एक घंटा और सम्भालो , मुझे आनंद से अहमदाबाद पहुचने मे इतना टाइम तो लग ही जाएगा.
रितेश रवि के कमरे की ओर भगा
रवि सर पटक पटक कर रोए जा रहा था और बड़बड़ा रहा था
" वो तो मेरे लिए आज से २२ साल पहले ही मर गए थे, ये तो आज उनका शरीर मरा है । अच्छा ही हुआ कि वो मर गए ! उनको तो बरसो पहले मर जाना चाहिए था ! अफ़सोस इस बात का है कि वो मेरे जनमदिन के दिन मरे! आज ही के दिन मरना था आपको ??? " रवि ज़ोर ज़ोर से रोने लगा
“I hate you papa ,..... I have always hated you my life !!” रवि के चेहरे पे घृणा के भाव उभर आये थे।
रितेश सकते मे था, बोला “ सुन रवि , संजना दीदी आ रही है. प्लीज़ कंट्रोल कर . देख सब ठीक होगा”
“दी आ रही है , संजना दी आ रही है .... हन वो सब ठीक कर देंगी ...” रवि अचानक शांत हो गया " जब दी आये तो मुझे उठा देना , बहुत थक गया हूँ मैं ," रवि ने कहा।
बहुत मुश्किल दौर था रितेश के लिए भी .... कभी सोचा ही नही था ऐसे हालातों से दो चार करना होगा.
पौना घंटे बाद डोरबेल बजते ही वो दरवाजे की ओर लपका – संजना दी और जीजाजी सामने खड़े थे.
संजना ने अंदर आते साथ कहा – सॉरी रितेश ... रवि की वजह से तुम्हे इतनी परेशानी होगी मैं नही जानती थी .
रितेश ने बताया की रवि क्या क्या बड़बड़ा रहा था .
संजना बोली – “रितेश रवि ने वो भयानक मंज़र देखा है बचपन मे जिसे वो कभी भूल ही नही पाया . वो गुमसुम हो गया तब से। मैं बड़ी थी इसलिए संभल गई!”
“ऐसा तो क्या हुआ उसके बचपन मे? अपने पिता से कोई इतनी नफ़रत करता है भला ? और उसने तो कहा था की आपके मम्मी पापा दोनो बचपन मे मर चुके थे !!” रितेश की उत्सुकता अपने चरम पर थी
संजन ने लंबी साँस भरी और कहा “ बहुत लंबी कहानी है , कहानी मम्मी से जुडी है।
बड़ी प्यारी थी , गोरी सी, भूरी भूरी सी आँखो वाली . नाना नानी की लाड़ली बेटी। नाना नानी ने उन्हें बड़े नाज़ो से पाला था । नाना कहते है हमारी मम्मी बहुत लकी थी उनके लिए।"
"और हमारे पापा उसी शहर में म्युनिसिपल कारपोरेशन में काम करते हमारे समाज के पहले सिविल इंजीनियर। चूँकि घर परिवार भी अच्छा था सो नाना को भा गए पापा। उन्होंने सोचा कि बेटी पास ही रहेगी, नज़रों के सामने । फिर तो मम्मी पापा की शादी हो गई। और अगले चार साल में तो मैं और रवि आ गए। रवि मुझसे तीन साल छोटा था। "
दीदी कहती रही, "घर अगले मोहल्ले में होने के कारण मम्मी अकसर नाना के घर जाया करती और ये बात पापा को नागवार गुजरती। बस पापा शराब पीने लगे मम्मी को पापा का पीना बिलकुल पसंद नहीं था। वो मना करती और पापा गाली गलौच करते। मम्मी चुपचाप सह जाती। अब तक तो मैं सात साल की और रवि चार साल का हो चूका था।"
"और अब तो पापा मम्मी पे हाथ भी उठाने लगे थे। मैं और रवि चुपचाप माँ को मार खाते देखते और सहमे रहते। ऐसे बाते कहाँ छुपती है, नाना तक बात पहुंच गई थी!
बस फिर उस दिन नाना ने पापा को बुलाया समझाने के लिए ..... वो दिन कयामत का दिन था समझो ! उस रात पापा बहुत ज्यादा पी कर आये थे, मम्मी खाना बना रही थी। पापा ने झगड़ा शुरू किया कि आख़िर नाना को बताया क्यूँ ?? हम दोनों वहीँ थे किचन में। और फिर पापा ने मम्मी को बाल पकड़कर घसीटा । मम्मी से बर्दाश्त नहीं हुआ, वो उठी और उन्होंने पापा को धक्का दिया, पापा गिर गए। मम्मी ने कोने में पड़ा हुआ केरोसिन का कनस्तर उठाया, खुद पे उड़ेला और बस आग लगा ली!! "
-" आग की लपटें जब उन्हें झुलसाने लगी तो बचने के लिए मम्मी चीखने लगी। और सोचो, पापा नशे में धुत हो, ज़मीन पे पड़े थे !! मैं बाहर भागी - पड़ोसियों को बुला लाई। लोगो ने कम्बल डाला , पानी डाला मगर वो बहुत ज्यादा झुलस चुकी थी - गठरी सी बन गई थी । और रवि उस पूरे हादसे के दौरान सहमा हुआ एक कोने मे मम्मी को जलते हुए देखता रहा– सुन्न सा!! "-"पड़ोसियों ने नाना को खबर दी, अस्पताल ले गए मम्मी को । मम्मी डॉक्टर के सामने गिड़गिड़ाती रही -" मुझे बचा लो, बचा लो ! " और डॉक्टर्स मम्मी को नही बच पाए । "
-"फिर तो मुझे और रवि को नाना अपने घर ले आये। हम वहीं पले बढ़े, कभी कमी नहीं होने दी मम्मी पापा की। मगर रवि कभी रोया नहीं फिर उस दिन के बाद - चुप्प हो गया। हमेशा के लिए गुमसुम !"
-"हमारे पापा ने एक साल बाद फिर से शादी कर ली। सुना था उनकी दूसरी पत्नी भी मम्मी की तरह जल के मर गई। उनका पीना बदस्तूर जारी रहा। उन्हे कभी कोई फरक़ नही पड़ा दो-दो पत्नियों की मौत के बाद। फिर तीसरे साल मे तीसरी शादी !! सुना है उनके दो बच्चे और बच्चे है । शहर वही था , समाज वही। कई शादियों और कार्यक्रमों में दिखाई दे जाते - अपनी तीसरी पत्नी और बच्चो के साथ। नाना ने हमें दूर ही रखा उनसे इतने सालो तक । "
-"और आज दोपहर को पापा को हार्ट अटैक आया और वो गुजर गए! उनकी तीसरी पत्नी का नाना पे फ़ोन था कि पापा की आखरी ख्वाहिश थी कि उनका बड़ा बेटा यानि रवि उनको मुखाग्नि दे!! नाना उसे पापा के अंतिम संस्कार के लिए बुला रहे है। उनका कहना है की रवि अब पापा को माफ़ कर दे , आखिरकार वो एक पिता थे !"
रितेश को अब समझ आया की रवि क्यूँ आग से दूर भागता रहा है!!
संजना और जीजा जी रवि के कमरे की मे गये.
“रवि, उठ !!! मैं आई हूँ – तेरी दीदी !” संजना ने प्यार से रवि के सर पे हाथ फेरते हुए कहा।
“दीदी ......”
रवि उठा और संजना से लिपट कर ज़ोर ज़ोर से रोने लगा। 22 बरस का दर्द, टीस, पीड़ा, आक्रोश, चुप्पी, जैसे सभी के सब्र का बाँध टूट गया था। दोनो भाई बहन एक दूसरे से लिपट कर देर तक रोते रहे।
थोड़ी देर बाद संजना और रवि शांत हो गये। वो आँसुओ का सैलाब अपने साथ सारे दर्द बहा ले गया था.
शाम घिर आई थी। रितेश ने उठ कर खिड़की खोल दी। आसमान एकदम साफ़ था - जैसे बारिश के बाद धुला आसमान। तारे और चाँद साफ़ दिखाई दे रहे थे।
" रवि , तू अपने लिए न सही , पापा के लिए न सही , माँ के लिए चल। आखिर तुझमें और उनमें कोई फ़र्क़ तो होना चाहिए न !!" संजना ने कहा।
"नही दीदी!! मैं उन्हें मुखाग्नि नहीं दूंगा। He doesn't deserve our sympathy!! हम जीते जी उनके लिए तरसे है - उन्हें मौत के बाद तरसने दो !! "
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