टूटे से गुल पनाग की
कहानी हूँ मैं दाग़ की
जली हूँ रोशनी से मैं
बुझे से इक चिराग़ की
लिखे कोई तो दास्ताँ
उजड़े हुए से बाग़ की
धुआँ नहीं गरमी नहीं,क्यूँ
ठंडी है वस्ल आग की ?
बिंधी हुई टूटी हुई तितली
अपने ही रेशमी ताग़ की
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