सुनो ...
कुछ कहोगे ?
तो अब तुम कहोगे
‘तुमने कहा था -
सुनो -
अतः मैंने सुना ! ‘
ओफो !!
मगर ये तो
बात करने की
एक रीत है।
बेतरतीब सही
मगर ये प्रीत है !
देखो
मुझे शब्दों में न उलझाओ
सुनो
इश्क़ पहेली है,
सुलझाओ!
बस एक बार
देख लूँ तुम्हें
जी भर ....
देह , प्राण
हो जाएँगे तर ...
और आवाजों से
शब्द स्वयं
जाएँगे झर !
सुनो
क्यूँ न
ख़त्म कर दे
कहने सुनने का
ये सिलसिला !
बस
फिर होंठ कहेंगे
होंठ सुनेंगे !
देह कहेगी
देह सुनेगी !
और ये शब्द
बेमानी हो
शून्य से टकरा
शून्य में
विलीन हो जाएँगे ।
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