ये रात हर रोज़
बेताल सी
वक़्त के काँधे पर
लदे चली आती है ।
ये रात वक़्त को
कहानी सुनाती है,
चाँद की तारों की
निहारिकाओ की ।
सुबह होते ही वह
सवाल पूछती है ।
वक़्त दिन भर
पूछे गए उन सवालों का
उत्तर ढूँढ लाता है
और फिर से
रात का बेताल
उड़ कर
लटक जाता है
उम्र के पेड़ पे
और एक शाम के
ढलने का इंतज़ार करते ...
# बस ऐ वें ही
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