1 February 2018

भूली यादें, ख़त पुराने और पुराने राज़ कुछ

भूली यादें, ख़त पुराने और पुराने राज़ कुछ 
बाद बरसो याद आए भूले हुए आग़ाज़ कुछ

शोर चुप बैठा रहा, तनहा रहा उस भीड़ में 
ख़ामुशी रह रहके करती ही रही आवाज़ कुछ 

पिघले सीसे सी वो बातें सुने हुए अरसा हुआ 
गूँजते है अब भी लेकिन कानो में अल्फ़ाज़ कुछ 

सब कहे  कि जानवर था आज का इंसा कभी 
वक़्त बदला, पर बदले वहशी से अन्दाज़ कुछ 

कौन सुनता अब भला -था जो बुज़ुर्गो ने कहा 

हैसियत अब है उनकी, जैसे टूटे हुए से साज़ कुछ

No comments: