16 January 2018

Collage - सपनों और ख़्वाहिशों का

एक collage  मैंने भी तो बनाया था .....केया  सोच रही थी। 
 ......थोड़ी ख्वाहिशें, थोड़े सपने और थोड़ा सा प्यार ...... बस यही सब तो था -टुकड़ा टुकड़ा......उस collage   में !!   कुछ भी तो पूरा नहीं था.....मगर फिर भी collage  तो पूरा था!

केया  ने सोचा था  ....जब वो उस collage  में कहीं जगह पाएगी तो सतरंगी रंग  भर देगी उसमें..... सुनहरा रंग बालों  में....  बदन जैसे पिघलती चाँदनी सा  .... गालों  पे रंग गुलाबी .... जिस्म संदली महक वाला .... रूह जैसे  कस्तूरी   और  ख़्वाब  फिरोज़ी   .......    
 अचानक नीलेश  मिसरा  की  गहरी खूबसूरत आवाज़ जैसे केया  को वापस धरातल पे ले आई थी।  ऐसी गहरी, भारी आवाज़ें उसे दीवाना बना देती थी। शायद यही वजह थी कि  शोख, अल्हड, चंचल सी २४  बरस की केया ग़ज़लों की बेहद शौक़ीन थी। !
उसके अलावा रोज़ रात  FM रेडियो पर नीलेश मिसरा  का   प्रोग्राम  - यादों  का इडियट बॉक्स  ! ये प्रोग्राम कभी सुनना  नहीं भूलती थी केया - फिर चाहे उसका exam  हो या कोई भी टेस्ट !
और आज उन्हीं की कहानी-मंडली के किसी फौजी सदस्य की लिखी कहानी सुना रहे थे नीलेश  मिसरा।  कहानी थी- " हरी मुस्कुराहटों वाला collage "  - एक  फ़ौजी  की कलम से फ़ौजियों  की कहानियाँ !


कितना  सटीक टाइटल था  न  !!  हरी-हरी वर्दियाँ ..... हरी पत्तियों  वाली वर्दियाँ  .....हरी पत्तियों के collage  वाले कपड़ो से सिली हुई वर्दियाँ !
वो  वर्दियाँ फट तो जातीं  है - वो हरी पत्तियों के collage  वाली वर्दियाँ  !! 
वो फट तो जाती है मगर वो पत्तियाँ सूखती नहीं कभी  .......  टूटती नहीं कभी ...... झड़ती नहीं कभी! ......  हाँ, रंग कमोबेश कभी-कभी उड़ ज़रूर जाते है !!

 बिलकुल वैसी ही तो थी समर  की यादें ! रंग उड़ गए थे ख़ुशियों  के, उन यादों से, मगर सूखी  नहीं थी वो यादें !!
 उन हरी वर्दी के हरे पत्तों वाले collage   की तरह - जुड़ी थी, चिपकी हुई थी जिस्म से जैसे! जैसे अब मौत ही अलग कर सकती थी उन वर्दियों को जिस्मों से , रूहों  से !

हाँ - मौत ने अलग ही तो कर दिया था समर को  उस हरी वर्दी से और केया  से !

वो यादें  फिर सर उठा कर चली आई थी ! अब कोई अलमारी, बटुआ, कोई किताब या ऐसी कोई जगह तो थी नहीं, जहाँ दबा कर, सहेज कर रख देती उन यादों को!  गाहे बेगाहे चली ही आती थी समर की यादें !

पापा से शायद पढ़ने का कीड़ा लगा था केया  को। बड़ी सी लाइब्रेरी थी उनकी - अंग्रेज़ी, रोमन और ग्रीक mythology की ढेरों  किताबें, और हिंदी तो खैर थी ही।  ग़ज़लों का शौक हालाँकि नहीं था पापा को, पर जाने कहाँ से ये कीड़ा काट गया था केया  को। 

फ़राज़, फैज़ अहमद फैज़, ग़ालिब , फ़िराक़ गोरखपुरी, मीर तकी मीर और जाने कौन-कौन से शायरों के कलाम जुबानी याद थे केया  को।  बस इसी  वजह से बी कॉम  के थर्ड ईयर में पिछले  दो साल से फेल होती रही थी केया  - ऊपर से ये रेडियो FM  का चस्का ! !
नीलेश  मिसरा की ठहरी, गहरी आवाज़ सन्नाटे में गूंज रही थी। बीच -बीच में बजते हुए रूमानी से वो गाने - यादों को और सुलगा रहे थे। 

वो यादें, फिर केया  को वहीं ले आई थी ..... उस रात, जब  अपने  लिविंग रूम में, अपने इर्द-गिर्द  किताबें बिखेरे हुए, मोबाइल पे अपने पसंदीदा शायर से चैट कर रही थी केया

 दोनों की बाते, अक्सर किसी एक नामचीन शायर और उनकी किसी एक ग़ज़ल  के बारे में होती थी - आज भी वैसे ही शुरुआत हुई थी। 

और फिर अचानक फ़ोन की स्क्रीन पे मैसेज उभरा था
-'सुनो , तुम्हे कॉल कर सकता हूँ ?'   
-'इतनी रात गए ?केया ने लिखा। 
- 'ना बाबासब सो रहे है - उठ गए तो मेरी शामत जाएगी......,' केया  ने लिखा था  
-  'तुम्हारी आवाज़ सुनना चाहता हूँ !,' फ़ोन की स्क्रीन पे फिर मैसेज उभरा था। 
-'नहीं, नहीं !!....नो वे !!....बिलकुल भी नहीं  !!,' केया  ने लिखा था !
- 'बस हेलो कहना और फिर रख देना ! '
- 'नो ..........................'
-'please सिर्फ एक बार !' वो   गिड़गिड़ाया था  
-'अच्छा  ठीक है, पर सिर्फ एक बार! वो भी हेलो - ओके ?? '
- 'पक्का !!' वहाँ  से स्क्रीन पे ये मैसेज उभरा था। 
 और फिर फ़ोन बजा था ...... 

उस वक़्त रात के साढ़े दस बजे थे।  कहने को अपनी पढ़ाई, पोथियाँ  लेकर बैठी थी केया, मगर हमेशा की तरह बस ग़ज़लों और कहानियों में उलझ कर रह गई थी। 
बस ऐसे ही किसी दौरान समर को पढ़ा था उसने ! शायद दो बरस पहले ??  
हाँ ...  दो साल से ऊपर हो गए थे !!  अच्छा  लगा था उसे समर का कलाम ! और फिर, साल भर पहले, एक  पाठक की हैसियत से बातें शुरू हुई थी फेसबुक पर, और कब वो उनकी फैन बन गई पता ही नहीं चलाफेसबुक से कब फ़ोन पर गए कुछ पता भी नहीं चला। 
समर फ़ौज में थे  -  कविताएं, कहानियां और ग़ज़लें लिखा करते थे।  समर ने ज्यादा कभी कुछ बताया नहीं अपने बारे  में - शायद सुरक्षा के लिहाज़ से!   इंटरनेट से ढूंढ ढूँढ  कर पढ़ लेती थे केया।  Youtube  पे उनकी कुछ कही कविताएँ  भी थी....... वो ठहरी और गहरी आवाज़ .. उफ़, समर की  दीवानी सी हो गई थी केया 

उस रात भी केया पढ़ने ही बैठी थी - फाइनल ईयर के इम्तिहान सर पे थे।  पिछले सेमेस्टर में भी दो ATKT  आई थी, उसकी मगर केया को कहाँ फ़र्क़ पड़ता था। फ़ोन बज रहा था - केया  की तन्द्रा टूटी। 

-'हेलोधीरे से केया  ने कहा था। 
-'wow ! कितनी खूबसूरत आवाज़ है तुम्हारी ! तुम्हे तो आल इंडिया रेडियो में एनाउंसर होना चाहिए !' 
 खिलखिलाकर हँस  पड़ी थी केया। 
- 'कुछ कह सकता हूँ ? बुरा तो नहीं मानोगी न ?'
- 'अरे नहीं, बेझिझक कहो !' केया बोली थी। 
- 'तुम्हे पता है - तुम्हारी आंखे बहुत सुन्दर है ??' समर ने          कहा था। 
-'हाँ ........ जानती हूँ ! '
-' तुम्हारे होंठ भी  !!'
- ' पता है !!'
- 'तुम्हारी हँसी -  ये खिर-खिर  वाली हँसी -बहुत अच्छी है !'
- 'अब बस , हुँह !!तुमने कहा था सिर्फ हेलो तक रहेगा! 'केया  बोली। 
- सुनोकेया  आज रात ऑफ है मेरा - कल से, रात में ड्यूटी होगी।  मेरे सीओ साब  बहुत स्ट्रिक्ट है - फ़ोन नहीं ले जा पाउँगा इसलिए आज जी भर तुम्हारी आवाज़ सुन लेने दो !

- अच्छा ठीक है - पर बस दो मिनट और !ओके ?
- ठीक है !
.और कुछ पल केया  और समर  खामोश थे  
.
.
.
.
..
' ..    केया   .....'
- 'हुँह' 
' ..    केया   .....'
- 'हुँह  ? '
'  ..  केया   .....'
- 'हुँह  ?,'  केया  जाने किन ख्यालों  में खो सी गई थी। 

- 'केया !!'
-' अरे बाबा , बोलो क्या है ?' 
-'पता है , जब तुम ये हुँह बोलती हो तो बहुत अच्छा  लगता है , एक बार और बोलो !'

-'हुँह' .... और खिलखिलाकर हँस पड़ी थी केया
अचानक , रूककर पूछा था केया  ने 
-'समर तुमने पी  है ?' 
- 'हाँ  .....मगर  control है खुद पे !'
- 'कितने पेग ?'
- 'यही कोई पाँच - छह !'
- 'पाँच - छह ? By  God, बस करो अब !' केया की आवाज़ में नाराज़गी थी !

-'तुम बस बात करती रहो केया। अगले चार-पाँच  दिनों में मेरी  कश्मीर पोस्टिंग जाएगी और वहाँ  तो नेटवर्क भी नहीं मिलता, शायद तुमसे फिर बात हो पाए इस तरह !' अपनी ही रौ में बोले जा रहा था समर। 
-'पता है मैंने कभी किसी लड़की से इस तरह, देर रात तक  बात नहीं की !! आई  ऍम   जेंटलमैन, I swear, केया !'

- 'सुनो समर, तुम सो जाओ - तुम्हे चढ़ गई है! 'केया  ने कहा था। 
- 'हाँ, एक-दो पेग और लूंगा मैं। फिर कहीं तुम्हे कुछ ऐसा वैसा कह बैठूँ इसलिए फ़ोन रख रहा हूँ ....   bye  केया !'

और फ़ोन कट गया था

अब  तो  रोज़ रात  केया इंतज़ार किया करती थी समर के फ़ोन का, मगर समर का   फ़ोन नहीं आया। 
और फिर कुछ रोज़ बाद समर का फ़ोन आया था - 'मेरी पोस्टिंग गई है केया, मैं अपनी यूनिट के साथ कश्मीर जा रहा हूँ - जाने कब फिर बात होगी।  bye  केया।' - और फ़ोन कट गया। 

इधर पिछले दो सालों से कश्मीर घाटी में  आतंकवादी घटनाएँ बहुत बढ़ गई थी।  आये दिन पुलिस चौकी पे ग्रेनेड से हमले , पेट्रोलिंग करती हुई CRPF या फ़ौज की गाड़ियों पे फ़िदायीन  हमले, बढ़ से गए थे। 

समर को कश्मीर गए हुए करीब चार महीने हो गए थे।  कोई खबर नहीं थी उसकी।  ऐसा कोई राब्ता भी नहीं था समर से उसकामगर पता नहीं - कहीं कुछ धागे उलझ तो गए थे - लाख कोशिशों के बावजूद सुलझा नहीं पा  रही थी केया। 

रिजल्ट आया था - फिर से एक सबजेक्ट में फेल  हो गई थी केया ! इस बात का कभी मलाल रहा ही नहीं था उसे। मगर  जाने क्यों, मन उचट सा गया था।  अबके तो  गणेश उत्सव में भी एक्टिव नहीं थी - जाने क्यों ?

१४ सितम्बर २०१७  - गणेश विसर्जन -पूरा शहर रंगो से सराबोर था - गणेश जी ढोल-नगाड़े के साथ निकल रहे थे गली मोहल्लो से। 
....... केया  नहीं गई अबके विसर्जन में। शोर-शराबे के बीच -घर आकर टीवी पे चैनल बदलती रही बेमन से।
........ और फिर अचानक - खबर थी सभी न्यूज़  चैनलों  पे  .......  पुंछ  में पेट्रोलिंग कर के लौट रहे फौजी दस्ते पे फिदायीन हमला हुआ था - सात फौजी मारे गए थे और शायद कुछ आतंकवादी भी !!!
और अगले चैनल पे समर का चेहरा देखा था केया  ने  -सन्न रह गई थी वो कुछ पल को !!
समर भी शहीद हो गया था !! 
  
महज एक बार फ़ोन पे हुई वो बात-वो मुलाक़ात ! समर को कहाँ जानती थी केया - कुछ भी तो नहीं जानती थी - कभी उसने बताया - कभी पूछा ! मौका भी कहाँ मिला था
बस उस एक मुलाक़ात में कुछ धागे जुड़ से गए थे समर से।  
समर अब नहीं था - मगर यादो के इस इडियट बॉक्स से निकल आए हरी पत्तियों वाले उस collage  ने फिर उन यादों को, उन ज़ख्मो को हरा कर दिया था !



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