मैं, संध्या राठौर , पेशे से इंजीनियर हूँ मगर मशीनों के बनिस्बत शब्दों सेऔर सुरो से ज्यादा लगाव रहा है। गीत लिखना , अपना ही संगीत रचना और अपनी ही धुन में गाकर संजो रखना - एक शौक से आदत हो चला है. शब्दों ने कभी खुद को कहानी , कविता या गीत के रूप में देखा - ग़ज़ल, एक असफल प्रयास ही रहा - चाहे लिखने में हो या गाने में!
खैर, कहानियां भी उतर आती है पन्नो पे कभी कभी ! यह भी ऐसा ही एक प्रयास है - जहाँ चुनी हुई आठ कहानियाँ ला रही हूँ आप सभी के लिए। अलग अलग कहानिया है - हमारे इर्द गिर्द घटती हुई घटनाओ की, किस्सों की कहानियाँ - इसलिए शीर्षक भी यही चुना है है - कुछ किस्से - कुछ हादसें !
उम्मीद करती हूँ ये कहानियाँ आप सभी को पसंद आएँगी। आभार !
आसमान .. धरती ... बादल... हवा .... मिटटी .... पानी ..... कल कल बहती नदिया , भोर .... हर जगह ही तो संगीत बिखरा पड़ा है। .. हर तरफ .. खुबसूरत कविता .... ग़ज़ल ...... कहानियाँ बिखरी सी पड़ी है .....
और मैं - संध्या -उर्फ़ सांझ-सवेरे आहिस्ता आहिस्ता समेटती हूँ इन शब्दों को ..... और फिर ये जेहन में उतर जाते है है - इख्तियार करते है एक शक्ल , अहसास का जामा पहन कर बस लाई हूँ हूँ फिर से आप सबके लिए - "गुलिस्ता " - मेरी तीसरी ebook .
धन्यवाद
संध्या राठौर
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