5 September 2017

गुलिस्ता - ज़िन्दगी की बगिया


मैं, संध्या राठौर , पेशे से इंजीनियर हूँ मगर मशीनों के बनिस्बत शब्दों सेऔर  सुरो से ज्यादा लगाव रहा है।  गीत लिखना , अपना ही संगीत रचना और अपनी ही धुन में गाकर संजो रखना - एक शौक से आदत हो चला है. शब्दों ने कभी खुद को कहानी , कविता या गीत के रूप में देखा - ग़ज़ल, एक असफल प्रयास ही रहा - चाहे लिखने में हो या गाने में!
खैर, कहानियां भी उतर आती है पन्नो पे कभी कभी ! यह भी ऐसा ही एक प्रयास है - जहाँ चुनी हुई आठ कहानियाँ ला रही हूँ आप सभी के लिए।  अलग अलग कहानिया है - हमारे इर्द गिर्द घटती हुई घटनाओ की, किस्सों की  कहानियाँ - इसलिए शीर्षक भी यही चुना है है - कुछ किस्से - कुछ हादसें !

उम्मीद करती हूँ ये कहानियाँ आप सभी को पसंद आएँगी।  आभार !




आसमान .. धरती ...    बादल... हवा .... मिटटी  ....  पानी  .....  कल कल बहती नदिया , भोर  .... हर जगह ही तो  संगीत बिखरा पड़ा है। .. हर तरफ   ..  खुबसूरत कविता  ....  ग़ज़ल  ...... कहानियाँ  बिखरी सी पड़ी है  .....
और मैं - संध्या -उर्फ़ सांझ-सवेरे आहिस्ता आहिस्ता समेटती हूँ इन शब्दों को .....  और फिर ये जेहन में उतर जाते है है - इख्तियार करते है एक शक्ल , अहसास का जामा  पहन कर बस लाई हूँ हूँ फिर से आप सबके लिए - "गुलिस्ता " - मेरी तीसरी ebook .

धन्यवाद

संध्या राठौर

  

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