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ख़याल परिंदे
किसी की न माने,
ले के चले जिस जहाँ,
ले चल मुझे तू वहाँ ....
रिसतीं है रातें,
सिसकते ये दिन है,
टूटा ग़मों से
सहर का बदन है।
रहना न चाहूँ यहाँ,
ले चल मुझे तू वहाँ ......
गिरते ये पत्ते,
इसक के शज़र से,
भटकते है दर को,
कितने पहर से ,
ठौर वो पाए जहाँ ......
ले चल मुझे तू वहाँ ......
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