14 May 2017

तुझको फिर मैं इक शाम - लिखूँगी !




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तुझको फिर मैं इक शाम - लिखूँगी !
इस सफ़र का तू अंजाम - लिखूँगी !
लफ़्ज़ लफ़्ज़ पढ़ लूँगी तुझको 
फिर ग़ज़ल कोई तेरे नाम - लिखूँगी !


रात की स्याही -काली गहरी 
आँखो की भाषा - गूँगी बहरी 
लब से , लब पे पैग़ाम -लिखूँगी 
फिर ग़ज़ल कोई तेरे नाम -लिखूँगी 

दरिया सी  हूँ मैं -कब मैं ठहरी 
सूरज की हूँ मैं -आब सुनहरी 
नाम तेरा सरे शाम  -लिखूँगी 
फिर ग़ज़ल कोई तेरे नाम -लिखूँगी 



#sandhya

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