7 April 2017

ये बातें सिमट कर

ये बातें सिमट कर
रह गई  है उँगलियों तक क्यूँ
ये आँखें  और लब ये
अब नही मिलते
न कोई बात करते,  क्यूँ
ये बातें ...

देखती हूँ  एकटक मैं
Facebook की
Timeline पर
जब जब उभरते हो ...

रूकती हूँ
मैं पढ़ती हूँ तुम्हें
दूसरों की वॉल पर
जब जब ठहरते हो ...

सुनो तुमसे गुज़ारिश है
एक दफ़ा
मेरे शहर चले आना
किसी कॉफ़ी कैफ़े पर
 चुस्की कॉफ़ी की
संग मेरे लगा जाना


ख़बर है कि
तुम न आओगे
बस तुम्हारी याद आएगी,
ये आँखे आँसुओं से
कर जिरह फिर
बारिशों में भीग जाएँगी

सुनो ऐ दिल ज़रा सोचो
दो पल को रूक जाना
नहीं जाना मुझे उन तक
और ये तय है
उन्हें मुझ तक
नहीं आना !

कभी सोचा है कि
रिश्ते  ऐसे बनते पल में यूँ
और फिर जाने
बिगड़ जाते है
अगले पल में क्यूँ ?


इसी ख़ातिर
सुनो ऐ दिल
ये बातें उँगलियों तक
 सिमटी थी ज्यूँ
उन्हें सिमटने दो
बस मिटने दो
मगर हमसे न पूछो क्यूँ




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