30 March 2017

Knock knock !


Knock knock !
कोई है वहाँ ? 
उसने पूछा - कौन है वहाँ ?
मैंने हौले से ख़यालों के दरवाज़ों पे 
फिर से दस्तक दी 
गर इजाज़त हो तो 
क्या मैं तुम्हारे ख़यालों में 
आ सकती हूँ ?
ख़यालों  से फिर ज़ेहन में
समा सकती हूँ ? 

उसने कहा - नहीं 
यहाँ कोई कमरा ख़ाली नहीं है 
ज़िन्दगी का अकाउंट है 
ट्विटर सा  जाली नहीं है 
अब जो आई 
सो आई  
फिर न आना यहाँ 
खुद मेरा ही यहाँ 
न ठौर है  न जहाँ 
मैं किसी का नहीं 
नहीं कोई मेरा यहाँ
सुनो 
तुम लौट जाओ

ये दरवाज़े तुम पे खुले है 
किसी पर नहीं खुलते 
यहाँ जो कोई था 
वो अब नहीं रहते 
नज़र ख़ामोश है 
लब भी कुछ नहीं कहते 
किसी की आरज़ू में 
सदियों से ग़म 
रहे सहते 
अब ये उसके सिवा 
किसी को भी नहीं सोचते 
इसलिए सुनो 
तुम लौट जाओ 






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