8 January 2017

Rejection - Dejection

शीबा ने जैसे ही अपना  ईमेल अकाउंट खोला - वो  मेल दिखा  जिसका इंतज़ार पिछले तीन महीनो से था  उसे ! शीबा का दिल धक् धक् करने लगा। 
courtsey  Internet 
काँपती  हुई उँगलियों से उसने मेल पर क्लिक किया - आँखे तो खुली थी उसकी, लेकिन mentally उसने जैसे अपनी  आँखे भींच ली - जैसे जवाब जानती थी वो !

जो अपेक्षा थी -एक  डर था  उसके जेहन में  कि  इस बार भी rejection  ही  होगा । वो कहते है न - ईश्वर  दिन में एक बार आपकी सोच को सच कर देता  है - वही हुआ !!

धड़कते दिल से मेल पढ़ा उसने,  एडिटर ने लिखा था- 'हम आपका पेपर इस स्पेशल issue  के लिए रिजेक्ट कर रहे है क्योंकि ये हमारी journal  के स्कोप के परे है'। 

पिछली बार जैसे तो नहीं टूटी शीबा  - जब वो हफ्ते भर परेशान   ही रही थी  -चिड़चिड़ी सी  हो गई थी शीबा  तब !  सबसे लड़ाई मोल ले ली थी उसने - सब से जैसे रिश्ता तोड़ सा लिया था ! जैसे emotions   के रोलर coaster  ride  पर थी।  बहुत खामियाजा भुगतना पड़ा था उसे अपने चिड़चिड़ेपन  के चलते - कई दोस्त कहीं पीछे - बहुत पीछे छूट गए थे - या छोड़ गए थे उसके इस emotional  upsurge  के चलते।  हालाँकि  अनुज और बच्चे साथ थे हमेशा - एक चट्टान की तरह फिर भी   इस दरमियान पाँच महीने गुज़र गए थे उसे सँभलते संभलते!

शीबा पीएचडी कर रही थी और तीन  साल से ऊपर होने आये थे - काम पूरा हो चूका था मगर पेपर न पब्लिश हो पाने से पीएचडी  अपनी उम्र में और साल जोड़े जा रहे थे। कॉलेज मैनेजमेंट गाइड ,दोस्त ,colleagues, students पडोसी -सब ही तो पूछने लगे थे उससे बार बार ! थकने लगी थी शीबा - अब टूटने सी लगी थी वो !

ये हालाँकि पीएचडी में बहुत  ही आम बात होती है - पेपर का rejection ! मगर शीबा ने सिर्फ रिजेक्शन ही तो देखा था - शुरू से - हर जगह - हर मोड़ पर - शायद इसलिए झुंझला जाती थी और अपना संतुलन कुछ खो सा बैठती थी। 

इतने सालो में उसके बच्चे उसका पति, सब सामंजस्य बिठा चुके थे उसके साथ - परिस्तिथियों के साथ - शीबा कभी नहीं बिठा पाई ! 

और आज फिर ये  rejection का जिन्न बोतल  से बाहर  निकल आया था !

-'क्या जाने क्यों - ये bad  luck मुझसे किस जनम का बदला ले रहा है ? ', मन खिन्न हो गया  था उसका।  

साल का पहला महीना था - कुछ इन्वेस्टमेंट  करने थे।  कोई पालिसी  नहीं थी अनुज और शीबा के नाम ! - जितने plans  लिए थे - सब की मियाद खत्म हो चुकी थी - फिर से नई policies  लेनी ज़रूरी  थी - दोनों बच्चे -Anne और Phillip  बहुत छोटे थे ! 

अनुज ने कहा - 'आठ साढ़े आठ बजे मेरे colleague  Sam   को बुला लेते है, वो LIC  agent भी है।  सभी पालिसी समझा देगा और  वो खाना भी यहीं खा लेगा। ओके ?'

अभी सुबह- सुबह  तो पडोसी  डेविड के बच्चो  को नाश्ता करवाया था शीबा ने!  दोनों को शीबा आंटी के हाथो बना पिज़्ज़ा बहुत पसंद जो थे  ! 

-'हद हो गई !,' शीबा भिन्नाई 
- 'अनुज, बच्चो के इम्तिहान है कल से - और  ये पेपर का  rejection  और ऊपर से  उस Sam  को सुनो दो घंटे - एक बार शुरू होता है तो बंद ही नहीं होता !! दिमाग की बैंड बजवाओ और खाना भी खिलाओ !!'

शीबा बिफर गई - 'मैं किसी को कोई खाना नहीं खिलाने वाली - समझे तुम !'

'दिन भर बस किचन  में घुसे रहो - काम धाम नहीं है कोई और मुझे !', ऐसे ही गुस्से में बड़बड़ाती रही शीबा,  'Rejection!!!   Rejection !!!  Rejection !!!  जिसे देखो reject  कर देता है !  और कितनी आसानी से !!  अरे ऐसा ही था तो इतने महीने बाद क्यों! पहले दूसरे दिन या हफ्ते भर में न   कर देते ! आस बँधाकर यूँ तोड़ देना - ये क्या बात हुई ?? ',  और गुस्से में अपने कमरे में जा कर दरवाजा धड़ाम से बंद कर दिया शीबा ने । 

मगर शीबा नहीं देख पाई - dejection  जो उसके  बच्चो और पति के चेहरे पर था! वो तीनो  कहीं rejection और dejection  के बीच में असमंजस में थे - मायूस थे !

और फिर थोड़ी देर बाद दरवाजा खुला। शीबा बाहर निकली , living room  में पहुँची जहाँ अनुज, ऐनी  और फिलिप्स मायूस से बैठे थे। 

शीबा के हाथ में बाइबिल थी , उसने  मुस्कुराते हुए कहा -

"Then spake Jesus again unto them, saying, I am the light of the world: he that followeth me shall not walk in darkness, but shall have the light of life." (John 8:12)

-'मैंने हार नहीं मानी बच्चो ! मैं नए सिरे से फिर कोशिश करुँगी और देखना इस बार तो पेपर पब्लिश हो ही जायेगा - देखना तुम सब , है न ऐनी ?'

ऐनी और फिलिप्स दोनों आकर शीबा से लिपट गए। और मुस्कुराते हुए अनुज ने उन तीनो को देखते हुए कहा 

"Rejoice always, pray without ceasing, give thanks in all circumstances; for this is the will of God in Christ Jesus for you " (1Thessalonians 5:16-18 )

और सब ने मिलकर कहा -आमीन !
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