28 December 2016

ले न इशक दे नाल कोई पंगा वे

इन दिनों बहुत खुश  रहती हूँ मैं - न जाने क्यों ? 
वजह ?
शायद किसी खूबसूरत सपने में जी रही हूँ मैं और कौन जाने  वो सपना  कल ही किसी  बुलबुले सा फूट  भी जाए !

कोई बात नहीं जी, कल का कल देखा जायेगा ! उसके लिए आज तो जीना नहीं छोड़ सकती न !! 

तो बस, आजकल मेरी ये काली सी आँखे कुछ ज्यादा ही मुस्कुराती है।  अकेले अकेले हँस पड़ती है ये आँखे और,  ये होंठ बस दूर तक फ़ैल जाते है और फिर  खिलखिलाती हुई एक हँसी दूर तक  बिखर जाती है। 
कई दफा शर्मा जाती है ये आँखे - बिलकुल  किसी अल्हड षोडशी सी !  फिर हथेलियाँ  ढाँप लेती है इन  आँखों को , ओफ़्सेट के उन रंगों को जो गालो पर अनायास ही उभर आते है  - जाने क्यूँ ??

ये दिल मुझसे कहता है अक्सर - शायद उसे  प्यार सा हो गया है !
धत् - ऐसा भी कहीं होता है क्या ?
ये दिल भी न!!! 
ये न  बिलकुल  मेरी ही तरह सिरफिरा और पागल  सा  है - जाने क्या क्या सोचता रहता है -  पगला कहीं का !! 

बात यहीं ख़त्म नहीं होती , फिर ये शायराना  दिल कहता है, उँगलियों से-लिखो !!
और न जाने  ये उंगलिया भी क्यों दिल की  बातो में आ जाती है ? घंटो  वे मोबाइल पर  क्या क्या लिखा करती  है ?
किसी से घंटो बतियाते रहती है ! 
वो सारी अनकही अनसुनी बाते  लिख जाती है !
 जाने किसे ?
 है कोई अनजाना मुसाफिर,  जो न कुछ  कहता है,  न सुनता है !!!
वो है भी या नहीं , कौन जाने ??
सोच सोच कर हँसी आ जाती है खुद पर। 
अब तो न इन उँगलियों पर, न मुस्कुराती इन आँखों पर  और  न यूँ ही बेसबब, बेवजह बिखर जाती इस हँसी पर, मेरा कोई बस ही चलता है! 
.. अब तो बस, ये जैसा कहती है -  वैसा-वैसा करती जाती हूँ मैं । उम्र का लिहाज़  करना तो इन्होंने जाने कब से छोड़ दिया !   इनकी तो बस -"अपनी ढपली - अपनी अलग  ही राग" है । 
अब ये देखो न, कैसी गुस्ताख़ी कर बैठे ये तीनो !!
लिखती है ये उँगलियाँ - "एक मुंडा मिला मुझे रस्ते में !"

हाय  रब्बा !! निर्लज्ज हो गई है पूरी की पूरी !  कुछ भी लिखती है !!
देखो जी,  मैंने न लिखा ये ! 
ये जो  अल्हड सी षोडशी है - वही,  जो छिप कर भीतर कहीं रहती है न मुझमे !! बस, उसी की करामात है ये ! 

कहीं  आपके भीतर भी तो  वैसी ही दीवानी सी, शोख, चंचल, अल्हड सी षोडशी  तो नहीं ?? 
हाँ  ????
हाहाहाहाहा - जी, बिलकुल मुमकिन है!  चलिए आप भी पढ़ लीजिये क्या लिखा है मेरी नादाँ, नटखट, बदमाश सी, अल्हड षोडशी -"सांझ " ने ! 

Original Poem

ईशका से ना ले पंगा वे (२)
कब अँख़ लड़ जाए 
कब नींद उड़ जाए 
हो जाए दिल विच दंगा वे 

एक मुंडा  मिला मुझे रास्ते में 
सौदा हुआ दिल का सस्ते में 
अब चैन न आए 
मेरा जिया घबराए 
 मुंडा लगदा मुझे चंगा वे 

कोई रोग लगा मेरे सीने में 
मज़ा आता है मर मर जीने में 
जैसे अग लग जाए 
दिल जल जल जाए 
हुआ आग सा वो, मैं पतंगा वे 

Translated  to Punjabi - courtesy  my twitter  friend प्रीत @beyondlove_iam 

Punjabi version

ले न  इशक दे नाल कोई पंगा वे 
क़द अँख़ लड़ जाए
क़द नींद उड़ जाए 
दिल विच हो जाए दंगा वे 

एक मुंडा मिलया मैनु रस्ते विच
होएया सौदा दिल दा ससते विच
हुण चैन ना आए
मेरा जी घबराए 
मुंडा लगदा मैनु चंगा वे 

कोई रोग लगा मेरे सीने विच
मज़ा आंदा मर मर जीने विच
जिवण अग लग जाए 
दिल सड़ सड़ जाए 
होअया अग ओह,   मैं पतंगा वे 

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