ट्विटर छोड़े हुए करीब करीब दो महीने होना आये थे । फेसबुक तो बहुत पहले ही छोड़ चुकी थी इरा। सोशल साइट्स से अब हमेशा के दूर रहने का निर्णय लिया था इरा ने। बहुत वक़्त जाया हो जाता है इस सब के चक्कर में - यह सोचकर ये निर्णय लिया था ।
एक ऐसी दुनिया से रिश्ते जोड़ने के चक्कर में अपनों से दूर हो गई थी इरा। बस अब और नहीं - यही सोच कर अलविदा कह दिया था ट्विटर को। कहाँ पता था उसे की जल्द ही आना होगा उसे वहीँ पर - उन्ही लोगो के बीच जिनसे दूर जाना चाहती थी, उन्ही से मदद मांगनी होगी उसे।
नहीं , नही- वजह थी वापस लौटने की - बहुत बड़ी वजह थी। और बिलकुल अलग ही वजह थी।
रागेश के ऑफिस में बहुत साल पहले एक बिहार का लड़का काम किया करता था - जीत। भैया कहा करता था था रागेश को। तब तो अनुज बहुत ही छोटा था। नेटवर्किंग , कंप्यूटर अस्सेम्प्ली, रिपेयर मेंटेनेंस वगैरह में बहुत कम समय में महारत हासिल कर ली थी जीत ने और फिर जल्द ही खुद का अपना बिज़नेस शुरू कर लिया था।
फिर घर ख़रीदा और शादी और दो प्यारी बेटियां। जीत अक्सर परिवार सहित इरा के घर आता था। बिहार का होने से आत्मीयता और ज्यादा थी।
३० तारीख की ही तो दिवाली थी इस बार। ३१ नवम्बर फ़ोन आया था जीत का।
- भैया, जीत बोल रहा हूँ। मेरा साला जो यूगांडा में काम करता था. उसकी वहां किसी एक्सीडेंट में death हो गई है। आपकी मदद चाहिए।
रागेश का अपना फ्रेंड सर्किल काफी बड़ा था और ख़ास तौर पर सैनिक स्कूल से पढ़े होने के कारण - जान पहचान का दायर कुछ ज्यादा ही बड़ा था। उनके कई सीनियर - फिल्म प्रोड्यूसर थे या पोलिटिशियन , बहुत सारे फ़ौज, एयर फाॅर्स अथवा नेवी में , आईएएस, आईपीएस रेलवे और जाने कहाँ कहाँ।
जीत इस बात से खूब वाकिफ था और इसी उम्मीद से उसने फ़ोन लगाया था रागेश को।
यूगांडा की राजधानी कम्पाला में कोई फेब्रिकेशन की कंपनी थी जहाँ जीत का साला अभय मिश्रा काम किया करता था गोरखपुर के नज़दीक भागल पाण्डेय गाँव के रहने वाले थे जीत के ससुराली पक्ष वाले।
पहले पहल तो रागेश ही नहीं समझ पाए की जीत और उसका परिवार किस प्रकार की मदद चाहते है ? जीत का कहना था कि अभय के रूममेट ने फ़ोन कर बताया की एक रोड हादसे में अभय की मृत्यु हो गई है ,
जीत इकलौता दामाद था अपने ससुराल में और फिर अवसर भी ऐसा था की पहुचना बहुत आवश्यक था। और चूँकि सूरत से गोरखपुर काफी दूर था और इस रूट पर रिजर्वेशन मिलना लगभग असम्भव होता है और मिल भी जाए और आप अपनी सीट पर बैठ पाए ये खुदा की रहमत ही होती है। इतना लंबा रास्ता खुद अपनी कार ड्राइव करते हुए तय किया था जीत और उसके परिवार ने ।
-हाँ जीत , मगर मैं क्या कर सकता हूँ ? रागेश ने कहा
-भैया हमको पैसे चाहिए। बड़ी मुश्किल से कंपनी वाले अभय की बॉडी भेजने को तैयार हुए है - कहते है - तीन लाख का खर्च है " - जीत बोला
- पहले कह रहे थे कि आकर जाओ , बड़ी मिन्नतों के बाद राजी हुए है और सिर्फ दो ही महीने की तनख्वाह देने को राज़ी हुए है " जीत बोलता रहा
- उसका सामान , फोन वैगरह कुछ भी नहीं देने को तैयार है।
- मगर मैं क्या कर सकता हूँ - रागेश ने लाचारी दिखाई - ये तो विदेश मंत्रालय का मामला है - यहाँ का होता तो बात अलग थी।
- भैया बॉडी १-२ तारिख को पहुच रही है , plz हो सके तो मदद करो - यहाँ तो खूब रोना गाना चल रहा है। त्यौहार का टाइम है और ऐसे में जवान बेटे की मौत !! भैया, दिमाग ही कुंद हो गया है - इसलिए आप को फ़ोन किया।
- देखते है - रागेश ने कहा।
क्या हुआ ? -इरा ने पूछा।
-वो जीत के साले की डेथ हो गई है यूगांडा में। मुझसे कह रहा है हेल्प करो। अब तुम ही बताओ मैं क्या कर सकता हूँ ? रागेश बोले
-रुको , हम ट्वीट कर सकते है। जब तक ट्विटर पर थी मैंने देखा था अपनी विदेश मंत्री को सबकी सहायता करते हुए। वो पक्का मदद करेंगी। - इरा उत्सुक होकर बोली।
-जीत से कहो सारी डिटेल्स मुझे भेजे और वो क्या चाहते है ये स्पष्ट लिखे - देखना ज़रूर हमें अपनी मंत्री मोहदया मदद करेंगी"
- मतलब तुम फिर ट्विटर पर जाओगी ? तुम तो कह रही थी तुमने ट्विटर छोड़ दिया - रागेश के स्वर में नाराजगी थी।
- हां छोड़ दिया है। पर यकीं मानो - मैं ट्वीट नहीं करुँगी - मेरे बहुत दोस्त है जो ट्विटर पर है - उनसे कहूँगी - वे मदद मांगेंगे। मैं नहीं जाउंगी - पक्का !
-तुम वैसे भी कब मेरी सुनती हो , जो तुम्हे ठीक लगे करो - रागेश ने उखड़ी हुई आवाज़ में कहा।
इरा अनमनी हो गई। नहीं कोई इरादा नहीं था उसका, उस बनावटी कृत्रिम दुनिया में - फेक लोगो के बीच। हाँलाकि कुछ अच्छे लोग मिले थे इन दो सालो में। एक बड़े भाई सरीखे दद्दा मिले थे और एक सहेली भी ।
खैर ,तय तो कर ही लिया था इरा ने - मदद तो वो दिलवाकर रहेगी जीत को!
और थोड़ी ही देर में whatsapp पर सब कुछ आ गया था।
- अभय का CV , पासपोर्ट , डेथ सर्टिफिकेट , पोस्ट मार्टम रिपोर्ट और जो उनके पास था सब कुछ।
अपनी एक सहेली को मैसेज किया इरा ने - सब कुछ लिखा और हर वो जानकारी लिख भेजी जो वो खुद जानती थी।
भरोसा दिया सहेली ने की जितना बन पड़ेगा मदद करेगी - मसला समझने की देर थी बस !
इंतज़ार करती रही इरा जवाब का - नहीं आया।
इधर जीत के फ़ोन आते रहे - इरा - रागेश और जीत को आश्वस्त करती रही। असमंजस में थी इरा -क्या करे। ट्विटर पर फिर अकाउंट नहीं खोलना चाहती थी।
कोई जवाब नहीं आया था। फिर जीत से ही पूछ लिया - हाँ जीत का अकाउंट था वहां - ट्विटर पर ।
फटाफट मैसेज लिख भेजा सहेली को।
- कोई बात नहीं - जीत का अकाउंट है - मैं ही ट्वीट कर देती हूँ।
बहुत दूर यूपी के छोटे से गाँव में था जीत और उसका ससुराल। वहां बिजली भी नहीं थी - आती जाती रहती थी। नेटवर्क भी नहीं मिलता था। wifi की कोई गुंजाईश नहीं थी - 3G भी कछुए की गति से चलता था।
पासवर्ड लिख भेजे जीत ने - चार या पांच - वो और लोगो की तरह फेसबुक पर ज्यादा एक्टिव था बनिस्बत के ट्विटर पर।
नहीं log कर पाई इरा जीत के अकाउंट से ।
- तो क्या हुआ ? ट्विटर पर आकर भी inactive तो रह ही सकती हूँ ! यह ही तो असली परीक्षा होगी न! - तय किया इरा ने !
इरा ने फिर कदम रख दिया था virtual world में - अबके जानती थी वो यहाँ क्यूँ आई थी!
और फिर कुछ ट्वीट्स किये इरा ने अपने अकाउंट से विदेश मंत्री मोहदय को। अपनी सखीयों , पुराने दोस्तों से अपील की कि उसकी ये बात सरकार तक पहुचने में मदद करे।
और सचमुच- सब आये - साथ मिलने लगा - एक momentum सा create हुआ था। इरा को यकीं नहीं था मगर उसके पुराने सभी दोस्तों ने अपने अपने फॉलोवर्स से अपील की -कहा वो सब अभय के लिए मदद की गुहार लगाए।
और भावविभोर थी इरा - सोचा नहीं था की इतनी मदद मिल सकेगी।
लोकल न्यूज़ पेपर में था - ऑनलाइन न्यूज़ पर था यह सब कुछ !
और फिर वो क्षण भी आया जब मंत्री मोहदया ने संज्ञान लिया - मदद का आश्वासन दिया।
यकीं था इरा को की मदद तो ज़रूर मिलेगी लेकिन जब मिली तो यकीं नहीं हुआ।
और फिर जो हुआ वो तो सपने जैसा ही था - विदेश मंत्रालय ने अगले तीन चार दिनों में अपने उच्चायुक्त से रिपोर्ट मंगवा ली थी और उसे ट्वीट करके जानकारी भी दे दी गई थी।
और उस दिन जीत का whatsapp पर एक ऑडियो मैसेज आया था। वो एक फ़ोन रिकॉर्डिंग थी। विदेश मंत्रालय के एक अधिकारी ने फ़ोन किया था मृतक के परिवार को।
देवाशीष , मृतक के बड़े भाई ने फ़ोन उठाया था - बड़े ही सौम्य तरीके से बात की - सब शिकायते धैर्य से सुनी। कहा था -जो शिकायत हो - यूगांडा सरकार , या कंपनी से उसे लिखित रूप में दे दे - सरकार ज़रूर मदद करेगी।
इरा सोच में पड़ गई थी।
कंपनी से मुआवज़ा माँगा था परिवार के लिए।
- वो कंपनी जिसने बात तक करने से इनकार कर दिया था। अभय के रूममेट को धमकी दी गई थी !
-उन्हें कहा गया था की अगर उन्होंने अभय के परिवार से बात की तो उन्हें भी अभय की तरह डब्बे में बंद कर उनके देश भेज दिया जायेगा !
-सब पागल से हो गए थे घर पर।
-कोई पढ़ा लिखा नहीं था उस परिवार में। कोई इतनी लिखा पढ़ी करने में सक्षम नहीं था। कंपनी ने पल्ला झाड़ लिया था सबसे।
- और तो और बैंक में जमा उसके 4000 डॉलर थे उसे लौटने की कोई बात नहीं थी !
- चार महीने से तनख्वाह भी नहीं दी थी कंपनी ने।
छठ पूजा पर आने को कहा था दुल्हन ने और माँ ने - मगर कंपनी से कोई मसला था -सबका पैसा दबाये बैठी थी। कैसे आता अभय छठ पूजा पर।
- छोटे बेटे को तो देखा भी न था अभय ने । पेट से थी उसकी पत्नी जब वो यूगांडा गया था।
- सोचा था अबके आएगा - सबके लिए कुछ न कुछ लाएगा। घर भी पुराना हो गया था। छज्जा टूट गया था -सब रिपेयर करवाना था - खेत में ट्यूबवेल लगवाना था - कितने सारे काम थे !
-बड़े भैया -देबाशीष भी हेल्पर थे सऊदी में - उन्हें भी थोड़ा बहुत मिल जाता था ! वो तो आ गए थे छठ पूजा के लिए ।
- अभय भी आया तो सही - ज़िंदा तो नहीं - उसकी क्षत-विक्षत सी, कीड़ो से बिलबिलाती लाश घर आई थी ।
- यूगांडा में कंपनी में सुपरवाइजर था - वेल्डिंग करता था अभय ।
जीत ने इरा को बताया था - वहां आप गाडी नहीं चला सकते थे - आप मात्र किराए पर चला सकते थे। गाडी सिर्फ वो इंसान चला सकता था जिसकी वो गाडी थी।
-अभय के पास न तो लाइसेंस था और न गाडी - वो तो किसी के पीछे बैठा था हेलमेट पहने।
-और हैरानी की बात - उसका सिर ही - infact माथा -ठीक आँखों के ऊपर वाला हिस्सा फटा था। और शरीर के किसी हिस्से में चोट नहीं थी - कहीं भी नहीं !!!
- कलाइयों और पैरो पर जाने कैसे रस्सी से बंधे होने के निशान थे ? क्यूँ थे - किसी के पास कोई जवाब नहीं था।
- यूगांडा के सरकारी अस्पताल की रिपोर्ट में यही लिखा था -एक्सीडेंट से मौत हुई है !
-कौन चला रहा था - उसका क्या हुआ - जिया या मरा ?- कोई ब्यौरा नहीं - कहीं नहीं - किसी के पास नहीं! और सच में क्या हुआ था - कोई बताने वाला नहीं - ज़िंदा या मुर्दा। बस एक रिपोर्ट थी -वही परम सच था - अजर सच था - अमर सच था। और बदकिस्मती ऐसी की यहाँ भी किसी को न सूझी की दोबारा पोस्ट मार्टम करवा लिया जाय। मौत ने सोचने समझने की शक्ति को कुंद जो कर दिया था।
-जवान कमाऊं बेटा मरा था !!
-दो बच्चो का बाप मरा था !!
-एक औरत का पति मरा था - विधवा थी वो अब ! - अनपढ़ लाचार विधवा - जिसे अब ज़िन्दगी भर जेठ जेठानी - सास ससुर के साथ अपनी ज़रूरतों का मुह बंद करके रहना था। बच्चो के लिए संजोये सपनो को भूल जाना था अब।
-ये अभय की थोड़ी ही मौत थी - ये तो तीन पीढ़ियों का भविष्य खा गई वो मौत थी - बूढ़े माँ बाप की औलाद की मौत - एक पति की मौत - और पिता की मौत !!!
कितना कुछ चलता रहा इरा के दिमाग में - कड़वा सच !!इरा के अपने नहीं थे ये - दूर तलक कोई रिश्ता नहीं निकलता था इनसे - मगर एक रिश्ता था - इंसान होने का रिश्ता।
एक ऐसी लड़ाई लड़ना शुरू किया था उस परिवार और इरा ने, जिसका परिणाम शायद सब जानते थे ।
इरा ने , उसके दोस्तों ने प्रदेश के मुख्य मंत्री, MP , विधायक से भी ट्विटर पर मदद मांगी थी - जैसी उम्मीद थी - किसी ने नहीं सुना - भारत सरकार ने तो सुना भी!
बहुत सारे लोगो ने इरा को बधाइयाँ दी - उसके इस साहसिक कदम पर - और बहुत लोगो ने खिल्ली भी उड़ाई - गूंगी बहरी सरकार से क्या अपेक्षा करना !!
चूक तो हुई थी -
मगर किससे ??
सरकार से ? - जो अपने नागरिकों की हितो की रक्षा में नाकामयाब रही !
बहरी नाकारा प्रदेश सरकार से ?? - जो रोजगार के पर्याप्त अवसर न उपलब्ध न करा की ,और अब कुछ सुनने को राज़ी न थी !
माता पिता से ? - क्योंकि वे पढ़े लिखे न थे ?
पत्नी से ? - वजह - अनपढ़ और कामकाजी नहीं होने की ?
परिवार की??- जिसने अभय के शव का पोस्ट मार्टम नहीं कराया, अभय की नौकरी के बारे में कोई जानकारी नहीं रखी - उस एजेंट से कुछ नहीं पूछा - बस वीसा मिलते ही अभय को समुन्दर पार भेज दिया था डॉलर कमाने ??
या अभय से?- जिसने अपने आप को शोषित न होने दिया और उसे ये अंत मिला था !
हाँ - चूक तो थी !!!
चूक थी - समाज में फैली ग़रीबी , बेरोजगारी , अशिक्षा की -और आज एक अभय विदेश में उसकी बलि चढ़ गया था !!
इरा का वापस ट्विटर पर आना उतना ही असफल प्रयास था जितना इस परिवार को न्याय मिलने की उम्मीद करना।
चूक तो अबके इरा से भी हो गई थी !!! पर कोई अफ़सोस नहीं था इरा को - एक मुहीम छेड़ी थी उसने - और ये तो महज शुरुआत थी -मंज़िल दूर ज़रूर थी - रास्ता बहुत मुश्किल भी - मगर इरा तो इरा ही थी न - कभी न हार मानने वाली - कभी न रुकने वाली। ये तो अब मंज़िलो को तय करना था कि वो इरा के रास्तों से कब आ मिलेंगी !!
एक ऐसी दुनिया से रिश्ते जोड़ने के चक्कर में अपनों से दूर हो गई थी इरा। बस अब और नहीं - यही सोच कर अलविदा कह दिया था ट्विटर को। कहाँ पता था उसे की जल्द ही आना होगा उसे वहीँ पर - उन्ही लोगो के बीच जिनसे दूर जाना चाहती थी, उन्ही से मदद मांगनी होगी उसे।
नहीं , नही- वजह थी वापस लौटने की - बहुत बड़ी वजह थी। और बिलकुल अलग ही वजह थी।
रागेश के ऑफिस में बहुत साल पहले एक बिहार का लड़का काम किया करता था - जीत। भैया कहा करता था था रागेश को। तब तो अनुज बहुत ही छोटा था। नेटवर्किंग , कंप्यूटर अस्सेम्प्ली, रिपेयर मेंटेनेंस वगैरह में बहुत कम समय में महारत हासिल कर ली थी जीत ने और फिर जल्द ही खुद का अपना बिज़नेस शुरू कर लिया था।
फिर घर ख़रीदा और शादी और दो प्यारी बेटियां। जीत अक्सर परिवार सहित इरा के घर आता था। बिहार का होने से आत्मीयता और ज्यादा थी।
३० तारीख की ही तो दिवाली थी इस बार। ३१ नवम्बर फ़ोन आया था जीत का।
- भैया, जीत बोल रहा हूँ। मेरा साला जो यूगांडा में काम करता था. उसकी वहां किसी एक्सीडेंट में death हो गई है। आपकी मदद चाहिए।
रागेश का अपना फ्रेंड सर्किल काफी बड़ा था और ख़ास तौर पर सैनिक स्कूल से पढ़े होने के कारण - जान पहचान का दायर कुछ ज्यादा ही बड़ा था। उनके कई सीनियर - फिल्म प्रोड्यूसर थे या पोलिटिशियन , बहुत सारे फ़ौज, एयर फाॅर्स अथवा नेवी में , आईएएस, आईपीएस रेलवे और जाने कहाँ कहाँ।
जीत इस बात से खूब वाकिफ था और इसी उम्मीद से उसने फ़ोन लगाया था रागेश को।
यूगांडा की राजधानी कम्पाला में कोई फेब्रिकेशन की कंपनी थी जहाँ जीत का साला अभय मिश्रा काम किया करता था गोरखपुर के नज़दीक भागल पाण्डेय गाँव के रहने वाले थे जीत के ससुराली पक्ष वाले।
पहले पहल तो रागेश ही नहीं समझ पाए की जीत और उसका परिवार किस प्रकार की मदद चाहते है ? जीत का कहना था कि अभय के रूममेट ने फ़ोन कर बताया की एक रोड हादसे में अभय की मृत्यु हो गई है ,
जीत इकलौता दामाद था अपने ससुराल में और फिर अवसर भी ऐसा था की पहुचना बहुत आवश्यक था। और चूँकि सूरत से गोरखपुर काफी दूर था और इस रूट पर रिजर्वेशन मिलना लगभग असम्भव होता है और मिल भी जाए और आप अपनी सीट पर बैठ पाए ये खुदा की रहमत ही होती है। इतना लंबा रास्ता खुद अपनी कार ड्राइव करते हुए तय किया था जीत और उसके परिवार ने ।
-हाँ जीत , मगर मैं क्या कर सकता हूँ ? रागेश ने कहा
-भैया हमको पैसे चाहिए। बड़ी मुश्किल से कंपनी वाले अभय की बॉडी भेजने को तैयार हुए है - कहते है - तीन लाख का खर्च है " - जीत बोला
- पहले कह रहे थे कि आकर जाओ , बड़ी मिन्नतों के बाद राजी हुए है और सिर्फ दो ही महीने की तनख्वाह देने को राज़ी हुए है " जीत बोलता रहा
- उसका सामान , फोन वैगरह कुछ भी नहीं देने को तैयार है।
- मगर मैं क्या कर सकता हूँ - रागेश ने लाचारी दिखाई - ये तो विदेश मंत्रालय का मामला है - यहाँ का होता तो बात अलग थी।
- भैया बॉडी १-२ तारिख को पहुच रही है , plz हो सके तो मदद करो - यहाँ तो खूब रोना गाना चल रहा है। त्यौहार का टाइम है और ऐसे में जवान बेटे की मौत !! भैया, दिमाग ही कुंद हो गया है - इसलिए आप को फ़ोन किया।
- देखते है - रागेश ने कहा।
क्या हुआ ? -इरा ने पूछा।
-वो जीत के साले की डेथ हो गई है यूगांडा में। मुझसे कह रहा है हेल्प करो। अब तुम ही बताओ मैं क्या कर सकता हूँ ? रागेश बोले
-रुको , हम ट्वीट कर सकते है। जब तक ट्विटर पर थी मैंने देखा था अपनी विदेश मंत्री को सबकी सहायता करते हुए। वो पक्का मदद करेंगी। - इरा उत्सुक होकर बोली।
-जीत से कहो सारी डिटेल्स मुझे भेजे और वो क्या चाहते है ये स्पष्ट लिखे - देखना ज़रूर हमें अपनी मंत्री मोहदया मदद करेंगी"
- मतलब तुम फिर ट्विटर पर जाओगी ? तुम तो कह रही थी तुमने ट्विटर छोड़ दिया - रागेश के स्वर में नाराजगी थी।
- हां छोड़ दिया है। पर यकीं मानो - मैं ट्वीट नहीं करुँगी - मेरे बहुत दोस्त है जो ट्विटर पर है - उनसे कहूँगी - वे मदद मांगेंगे। मैं नहीं जाउंगी - पक्का !
-तुम वैसे भी कब मेरी सुनती हो , जो तुम्हे ठीक लगे करो - रागेश ने उखड़ी हुई आवाज़ में कहा।
इरा अनमनी हो गई। नहीं कोई इरादा नहीं था उसका, उस बनावटी कृत्रिम दुनिया में - फेक लोगो के बीच। हाँलाकि कुछ अच्छे लोग मिले थे इन दो सालो में। एक बड़े भाई सरीखे दद्दा मिले थे और एक सहेली भी ।
खैर ,तय तो कर ही लिया था इरा ने - मदद तो वो दिलवाकर रहेगी जीत को!
और थोड़ी ही देर में whatsapp पर सब कुछ आ गया था।
- अभय का CV , पासपोर्ट , डेथ सर्टिफिकेट , पोस्ट मार्टम रिपोर्ट और जो उनके पास था सब कुछ।
अपनी एक सहेली को मैसेज किया इरा ने - सब कुछ लिखा और हर वो जानकारी लिख भेजी जो वो खुद जानती थी।
भरोसा दिया सहेली ने की जितना बन पड़ेगा मदद करेगी - मसला समझने की देर थी बस !
इंतज़ार करती रही इरा जवाब का - नहीं आया।
इधर जीत के फ़ोन आते रहे - इरा - रागेश और जीत को आश्वस्त करती रही। असमंजस में थी इरा -क्या करे। ट्विटर पर फिर अकाउंट नहीं खोलना चाहती थी।
कोई जवाब नहीं आया था। फिर जीत से ही पूछ लिया - हाँ जीत का अकाउंट था वहां - ट्विटर पर ।
फटाफट मैसेज लिख भेजा सहेली को।
- कोई बात नहीं - जीत का अकाउंट है - मैं ही ट्वीट कर देती हूँ।
बहुत दूर यूपी के छोटे से गाँव में था जीत और उसका ससुराल। वहां बिजली भी नहीं थी - आती जाती रहती थी। नेटवर्क भी नहीं मिलता था। wifi की कोई गुंजाईश नहीं थी - 3G भी कछुए की गति से चलता था।
पासवर्ड लिख भेजे जीत ने - चार या पांच - वो और लोगो की तरह फेसबुक पर ज्यादा एक्टिव था बनिस्बत के ट्विटर पर।
नहीं log कर पाई इरा जीत के अकाउंट से ।
- तो क्या हुआ ? ट्विटर पर आकर भी inactive तो रह ही सकती हूँ ! यह ही तो असली परीक्षा होगी न! - तय किया इरा ने !
इरा ने फिर कदम रख दिया था virtual world में - अबके जानती थी वो यहाँ क्यूँ आई थी!
और फिर कुछ ट्वीट्स किये इरा ने अपने अकाउंट से विदेश मंत्री मोहदय को। अपनी सखीयों , पुराने दोस्तों से अपील की कि उसकी ये बात सरकार तक पहुचने में मदद करे।
और सचमुच- सब आये - साथ मिलने लगा - एक momentum सा create हुआ था। इरा को यकीं नहीं था मगर उसके पुराने सभी दोस्तों ने अपने अपने फॉलोवर्स से अपील की -कहा वो सब अभय के लिए मदद की गुहार लगाए।
और भावविभोर थी इरा - सोचा नहीं था की इतनी मदद मिल सकेगी।
लोकल न्यूज़ पेपर में था - ऑनलाइन न्यूज़ पर था यह सब कुछ !
और फिर वो क्षण भी आया जब मंत्री मोहदया ने संज्ञान लिया - मदद का आश्वासन दिया।
यकीं था इरा को की मदद तो ज़रूर मिलेगी लेकिन जब मिली तो यकीं नहीं हुआ।
और फिर जो हुआ वो तो सपने जैसा ही था - विदेश मंत्रालय ने अगले तीन चार दिनों में अपने उच्चायुक्त से रिपोर्ट मंगवा ली थी और उसे ट्वीट करके जानकारी भी दे दी गई थी।
और उस दिन जीत का whatsapp पर एक ऑडियो मैसेज आया था। वो एक फ़ोन रिकॉर्डिंग थी। विदेश मंत्रालय के एक अधिकारी ने फ़ोन किया था मृतक के परिवार को।
देवाशीष , मृतक के बड़े भाई ने फ़ोन उठाया था - बड़े ही सौम्य तरीके से बात की - सब शिकायते धैर्य से सुनी। कहा था -जो शिकायत हो - यूगांडा सरकार , या कंपनी से उसे लिखित रूप में दे दे - सरकार ज़रूर मदद करेगी।
इरा सोच में पड़ गई थी।
कंपनी से मुआवज़ा माँगा था परिवार के लिए।
- वो कंपनी जिसने बात तक करने से इनकार कर दिया था। अभय के रूममेट को धमकी दी गई थी !
-उन्हें कहा गया था की अगर उन्होंने अभय के परिवार से बात की तो उन्हें भी अभय की तरह डब्बे में बंद कर उनके देश भेज दिया जायेगा !
-सब पागल से हो गए थे घर पर।
-कोई पढ़ा लिखा नहीं था उस परिवार में। कोई इतनी लिखा पढ़ी करने में सक्षम नहीं था। कंपनी ने पल्ला झाड़ लिया था सबसे।
- और तो और बैंक में जमा उसके 4000 डॉलर थे उसे लौटने की कोई बात नहीं थी !
- चार महीने से तनख्वाह भी नहीं दी थी कंपनी ने।
छठ पूजा पर आने को कहा था दुल्हन ने और माँ ने - मगर कंपनी से कोई मसला था -सबका पैसा दबाये बैठी थी। कैसे आता अभय छठ पूजा पर।
- छोटे बेटे को तो देखा भी न था अभय ने । पेट से थी उसकी पत्नी जब वो यूगांडा गया था।
- सोचा था अबके आएगा - सबके लिए कुछ न कुछ लाएगा। घर भी पुराना हो गया था। छज्जा टूट गया था -सब रिपेयर करवाना था - खेत में ट्यूबवेल लगवाना था - कितने सारे काम थे !
-बड़े भैया -देबाशीष भी हेल्पर थे सऊदी में - उन्हें भी थोड़ा बहुत मिल जाता था ! वो तो आ गए थे छठ पूजा के लिए ।
- अभय भी आया तो सही - ज़िंदा तो नहीं - उसकी क्षत-विक्षत सी, कीड़ो से बिलबिलाती लाश घर आई थी ।
- यूगांडा में कंपनी में सुपरवाइजर था - वेल्डिंग करता था अभय ।
जीत ने इरा को बताया था - वहां आप गाडी नहीं चला सकते थे - आप मात्र किराए पर चला सकते थे। गाडी सिर्फ वो इंसान चला सकता था जिसकी वो गाडी थी।
-अभय के पास न तो लाइसेंस था और न गाडी - वो तो किसी के पीछे बैठा था हेलमेट पहने।
-और हैरानी की बात - उसका सिर ही - infact माथा -ठीक आँखों के ऊपर वाला हिस्सा फटा था। और शरीर के किसी हिस्से में चोट नहीं थी - कहीं भी नहीं !!!
- कलाइयों और पैरो पर जाने कैसे रस्सी से बंधे होने के निशान थे ? क्यूँ थे - किसी के पास कोई जवाब नहीं था।
- यूगांडा के सरकारी अस्पताल की रिपोर्ट में यही लिखा था -एक्सीडेंट से मौत हुई है !
-कौन चला रहा था - उसका क्या हुआ - जिया या मरा ?- कोई ब्यौरा नहीं - कहीं नहीं - किसी के पास नहीं! और सच में क्या हुआ था - कोई बताने वाला नहीं - ज़िंदा या मुर्दा। बस एक रिपोर्ट थी -वही परम सच था - अजर सच था - अमर सच था। और बदकिस्मती ऐसी की यहाँ भी किसी को न सूझी की दोबारा पोस्ट मार्टम करवा लिया जाय। मौत ने सोचने समझने की शक्ति को कुंद जो कर दिया था।
-जवान कमाऊं बेटा मरा था !!
-दो बच्चो का बाप मरा था !!
-एक औरत का पति मरा था - विधवा थी वो अब ! - अनपढ़ लाचार विधवा - जिसे अब ज़िन्दगी भर जेठ जेठानी - सास ससुर के साथ अपनी ज़रूरतों का मुह बंद करके रहना था। बच्चो के लिए संजोये सपनो को भूल जाना था अब।
-ये अभय की थोड़ी ही मौत थी - ये तो तीन पीढ़ियों का भविष्य खा गई वो मौत थी - बूढ़े माँ बाप की औलाद की मौत - एक पति की मौत - और पिता की मौत !!!
कितना कुछ चलता रहा इरा के दिमाग में - कड़वा सच !!इरा के अपने नहीं थे ये - दूर तलक कोई रिश्ता नहीं निकलता था इनसे - मगर एक रिश्ता था - इंसान होने का रिश्ता।
एक ऐसी लड़ाई लड़ना शुरू किया था उस परिवार और इरा ने, जिसका परिणाम शायद सब जानते थे ।
इरा ने , उसके दोस्तों ने प्रदेश के मुख्य मंत्री, MP , विधायक से भी ट्विटर पर मदद मांगी थी - जैसी उम्मीद थी - किसी ने नहीं सुना - भारत सरकार ने तो सुना भी!
बहुत सारे लोगो ने इरा को बधाइयाँ दी - उसके इस साहसिक कदम पर - और बहुत लोगो ने खिल्ली भी उड़ाई - गूंगी बहरी सरकार से क्या अपेक्षा करना !!
चूक तो हुई थी -
मगर किससे ??
सरकार से ? - जो अपने नागरिकों की हितो की रक्षा में नाकामयाब रही !
बहरी नाकारा प्रदेश सरकार से ?? - जो रोजगार के पर्याप्त अवसर न उपलब्ध न करा की ,और अब कुछ सुनने को राज़ी न थी !
माता पिता से ? - क्योंकि वे पढ़े लिखे न थे ?
पत्नी से ? - वजह - अनपढ़ और कामकाजी नहीं होने की ?
परिवार की??- जिसने अभय के शव का पोस्ट मार्टम नहीं कराया, अभय की नौकरी के बारे में कोई जानकारी नहीं रखी - उस एजेंट से कुछ नहीं पूछा - बस वीसा मिलते ही अभय को समुन्दर पार भेज दिया था डॉलर कमाने ??
या अभय से?- जिसने अपने आप को शोषित न होने दिया और उसे ये अंत मिला था !
हाँ - चूक तो थी !!!
चूक थी - समाज में फैली ग़रीबी , बेरोजगारी , अशिक्षा की -और आज एक अभय विदेश में उसकी बलि चढ़ गया था !!
इरा का वापस ट्विटर पर आना उतना ही असफल प्रयास था जितना इस परिवार को न्याय मिलने की उम्मीद करना।
चूक तो अबके इरा से भी हो गई थी !!! पर कोई अफ़सोस नहीं था इरा को - एक मुहीम छेड़ी थी उसने - और ये तो महज शुरुआत थी -मंज़िल दूर ज़रूर थी - रास्ता बहुत मुश्किल भी - मगर इरा तो इरा ही थी न - कभी न हार मानने वाली - कभी न रुकने वाली। ये तो अब मंज़िलो को तय करना था कि वो इरा के रास्तों से कब आ मिलेंगी !!
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