ये सफ़र नहीं मेरा ,
ये तो घर नहीं मेरा
न मुसाफ़िर मेरे ,
न ये मंज़िल मेरी राह की .....
फिर भी चल रही हूँ मैं ,
गिर संभल रही हूँ मैं
है न कोई यहाँ ,
बस है मैं और मेरी आवारगी ।
बिखरे रंग कई
तेरे संग कई
मन में बजने लगे थे
जलतरंग कई
यूँ न कंकर उठा
और न हलचल मचा
दिल में उठने लगी आह सी
तू तो कोई नहीं
तू कहीं भी नहीं
फिर भी ख़्वाबो में तू
और ख्याल में तू
तू जो लौट गया
फिर न वापस मुड़ा
फिर भी क्यों है तेरी चाह सी
ये तो घर नहीं मेरा
न मुसाफ़िर मेरे ,
न ये मंज़िल मेरी राह की .....
फिर भी चल रही हूँ मैं ,
गिर संभल रही हूँ मैं
है न कोई यहाँ ,
बस है मैं और मेरी आवारगी ।
बिखरे रंग कई
तेरे संग कई
मन में बजने लगे थे
जलतरंग कई
यूँ न कंकर उठा
और न हलचल मचा
दिल में उठने लगी आह सी
तू तो कोई नहीं
तू कहीं भी नहीं
फिर भी ख़्वाबो में तू
और ख्याल में तू
तू जो लौट गया
फिर न वापस मुड़ा
फिर भी क्यों है तेरी चाह सी
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