पिघलना है मुझे तुममे सिंदूरी सुबह का कोई
दहकता सूरज हो जैसे.
सुनो.... मुझको खुद मे यूँ थोडा थोडा सा ,
पिघलने दो न.....पिघलने दो न..
बिखरी शाम की रंगत,
सुरमई, शाम की सूरत
सुरमई, शाम की सूरत
अंधेरो के ये झुरमुट है
उजालो के ये साये है
बिखरना है मुझे तुम मे
सुरमई शाम के कोई ,
अँधेरे रोशन हो जैसे.
सुनो.... मुझको खुद मे यूँ थोडा थोडा सा ,
बिखरने दो न.....बिखरने दो न..
वो बरसी यूँ घटा काली
चुरा के सूरज की लाली
बज उठे जल तरंग जैसे
ढोल हो या मृदंग जैसे
बरसना है मुझे तुम मे
सुरीली बारिश की कोई
खनकती पायल हो जैसे.
सुनो.... मुझको खुद मे यूँ थोडा थोडा सा ,
बरसने दो न.....बरसने दो न..
निगाहों की हुई बातें
रात भर जागती यादे
आँख से छू लिया तूने
लम्स एक पा लिया मैंने
रहना है मुझे तुम मे
अधूरे ख्वाब को कोई
मुक्कम्मल कर गया जैसे
सुनो.... मुझको इन आँखों में थोडा थोडा सा ,
बसने दो न....बसने दो न..
रूह से रूह का बंधन
महकती साँस, ज्यूँ चन्दन
नहीं देखा तुझे अब तक
मगर एक आस है अब तक
कि रहना है मुझे तुम में
जिस्म में जान हो कोई
धीमी सी धड़कन के जैसे
सुनो.... मुझको अपने दिल में थोडा थोडा सा ,
धड़कने दो न....धड़कने दो न..
No comments:
Post a Comment