"सुन सानवी , तुझे पता है समाइरा मैडम की शादी तय
हो गई है ?" प्रीत बोली।
"क्या बात कर
रही है ? मगर,
तुझे कैसे पता,
मैं तो कल
ही कॉलेज गई
थी, कोई बोला भी नहीं मुझसे " सानवी बोली।
"वो तो मुझे पता नहीं ! लेकिन, गज़ब हाँ ! समाइरा मैडम शादी के लिए
मानी तो सही ! और उससे भी
बड़ी बात कि
वो बंदा कैसा होगा जिसने मैडम से शादी करने की हिम्मत दिखाई !! " और सानवी और प्रीत ठहाका लगा कर
हँस पड़ी।
सान्वी और प्रीत दोनों एक आर्ट्स कॉलेज में लेक्चरर थी और ख़ास
सहेलियां भी। उनकी हेड-ऑफ़-डिपार्टमेंट 'समाइरा सान्याल' थी जिसकी वे
बात कर रही
थी। सान्वी उन दिनों मैटरनिटी लीव पर थी।
बेटी हुई थी
उसे। प्रीत उसे
रोज़ शाम को
कॉलेज में हुई
सारी बातो का ब्यौरा देती थी - और आज यही
सब बताने के
लिए प्रीत ने
फ़ोन किया था।
किसी काम के
सिलसिले में एक
दिन पहले ही
सान्वी कॉलेज गई थी
मगर चूँकि बेटी सिर्फ महीने भर की
थी इसलिए वह
एक घंटे में
ही घर लौट आई थी
और शायद इसलिए उसे इस
बारे में कुछ
पता नहीं था।
सान्वी को कुछ दस-एक साल हो गए थे कॉलेज में नौकरी करते हुए और प्रीत चार साल पहले ही नियुक्त हुई थी।
ये कॉलेज शहर
के नामी गिरामी आर्ट्स कॉलेजों में
से एक था।
शहर के बीचो बीच था कॉलेज। काफी पुराना था । सान्वी तथा प्रीत इंग्लिश डिपार्टमेंट में थी
और समाइरा सान्याल, उनकी हेड ।
जहाँ सान्वी और
प्रीत २५-२८ साल की थी,
वहीँ समाइरा करीब ४२ साल की
थी
और एक संपन्न घराने की
थी। माँ बाप की
इकलौती बेटी थी।
माँ-बाप, दोनों ही
डॉक्टर थे , अपने अपने फील्ड के
ख्यातिप्राप्त ।
हालॉकि माँ-बाप डॉक्टर थे, मगर समाइरा कभी डॉक्टर नहीं बनना चाहती थी।
शहर के सबसे बढ़िया कान्वेंट स्कूल से पढ़ी थी
... प्रखर, बड़ी अनुशाशनप्रिय और
अक्खड़ स्वभाव की
- मजाल है किसी की सुने ।
बहुत खूबसूरत , गोरी , लम्बी , तीखे नैन नक्श , कड़क चाल। किसी मॉडल से कम
नहीं थी वो। हावर्ड यूनिवर्सिटी से इंग्लिश में पीएचडी कर
लौटी थी। उन्हें उसे अपने मम्मी पाप से
लगाव था बहुत इसलिए शायद वापस आई थी,
अपने इस शहर
में । प्रखर तो थी ही
, शहर के नामी गिरामी लोगो में
उनके मम्मी-पापा का
उठना बैठना था
-इसलिए इस कॉलेज में उसे आराम से नौकरी मिल
गई थी। ये
शायद १९९३ की बात
थी।
और आज इस कॉलेज में एक लंबा अरसा हो गया था
उसे
। उसके कड़क , अनुशाशनप्रिय स्वभाव के कारण, विद्यार्थी तो
क्या , पूरा स्टाफ, और
तो और कॉलेज प्रसाशन थर्राता था।
हाँ , समाइरा ने किन्ही वजहों से शादी नहीं की कभी। किसी की हिम्मत नहीं थी पूछने की।
पर न जाने कितनी तरह की बातें होती रहती थी उनके बारे में। खैर, हेड थी समाइरा । दोनों भी खौफ खाते थे समाइरा से बाकी स्टाफ की तरह। "बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधता ??"
और आज ये
खबर मिली थी
उड़ती उड़ती कि
समाइरा सान्याल शादी कर रही है। फिर शादी का
कार्ड भी आ गया। The Leela में शादी थी। पूरा डिपार्टमेंट invited था, कॉलेज के और
भी स्टाफ थे,
शहर की नामी गिरामी हस्तियां मौजूद थी वहां। सान्वी अपनी छोटी सी
बेटी को लेकर गई थी -जो
अब
सवा महीने की हो
गई थी। बहुत शानदार शादी थी।
सब खुश थे
- ख़ास तौर पर
female स्टाफ - ये सोचकर की
अब मैडम घर,
ससुराल , बच्चे का मतलब समझ सकेंगी और
बात-बेबात उन्हें लताड़ा नहीं करेंगी।
बहुत बड़े घराने में रिश्ता तय हुआ था समाइरा मैडम का।
नज़दीक के शहर
में आयल मिल्स थी उनकी। शायद १००० करोड़ से
ज्यादा टर्न ओवर
था। राघव घोष नाम
था उनके हस्बैंड का। केमिकल इंजीनियर थे।
वे भी MIT , USA से पढ़कर आये
थे। जाने कितने एकड़ खेती थी, कितने अस्पताल, ऑटोमोबाइल शोरूम्स , ज्वेलरी शोरूम्स थे, उनके शहर भर में।
काफी impressive पर्सनालिटी थी, राघव सर की। सब
खुश थे की
आखिर समाइरा मैडम को
एक जीवन साथी मिल गया था।
हाँ , वक़्त के साथ
बदलने लगी थी
समाइरा मैडम. तेवर थोड़े नरम हो
गए थे। अब
बात बात पर
मेमो नहीं देती थी।
मगर कहते है न कि वक़्त के न पाँव होते है और न ही वक़्त अपनी परछाई लिए चलता है कभी मगर छाप छोड़ जाता है - लोगो की ज़िंदगियों मे ! वक़्त अपने कदम बढ़ा रहा था एक नये समय की ओर ...........
यहाँ सान्वी की जिया भी करीब साल
भर की हो गई
है और वहाँ समाइरा मैडम की
शादी भी।
सान्वी को छुट्टी चाहिये थी, जिया की तबियत ठीक नहीं चल रही थी - बुखार था दो दिन से -१०२ - उतरने का नाम ही नहीं ले रहा था। सास से भी संभल नहीं रही थी जिया अब। तब मन, सान्वी के पति, ने उसे छुट्टी ले लेने को कहा था। CL फॉर्म पर मैडम के Signatures चाहिए थे।
सान्वी केबिन के
बाहर पहुंची तो
ज़ोर ज़ोर से
आवाज़ आ रही थी समाइरा मैडम की। किसी से बहस हो
रही थी उनकी।
" नहीं , मैं घर पर नहीं बैठूंगी। मेरे मम्मी पापा ने मुझे पढ़ाया लिखाया और आज इस कॉलेज में मैं इतने सीनियर पोजीशन पर हूँ और तुम कहते हो मैं जॉब छोड़ दूँ ! NO WAY ! "
- Look, you cannot talk to me this way! .......Mind your language ! Dare you use that language with me !
Go to hell, Raghav !
केबिन पर दस्तक देने के लिए उठे हाथ रुक गए। सान्वी को समझ नहीं आया क्या करे।राजेश सर आते दिखे सान्वी को।
"क्या हुआ मैडम, यहाँ क्यूँ खड़े
हो ?" राजेश सर फुसफुसाए।
" वो सर मुझे अपनी CL फॉर्म पर मैडम के हस्ताक्षर करवाने थे इसलिए आई
थी, मगर अंदर तो बहुत गरम
है मैडम - शायद राघव सर से
कहा सुनी हुई
है ," सान्वी दबी आवाज़ में बोली।
चौधरी सर भी आ
पहुचे थे वहां। मैडम से उम्र में
बड़े थे चौधरी सर।
" यहाँ मत खड़े
रहिये आप सब
लोग। अपनी-अपनी जगह जाईये " चौधरी सर बोले थे।
" सर ... वो . मैं ...... मैडम ... sign ...... ", सान्वी हकलाते हुए
बोली।
" हाँ , वो परेशान है
अभी। कल भी रो
रही थी वो।
लगता है काफी तनाव चल रहा
है दोनों के
बीच " . चौधरी सर बोले ," मैंने पूछा था समाइरा से
, मगर वो कुछ
बोली नहीं ख़ास,
बस उसकी आँख
से आंसू निकल आये थे "
" बड़ी उम्र में दो इंसानो को सामंजस्य बिठाना बहुत मुश्किल होता है - ख़ास तौर पर जब दो बड़े अहम् वाले इंसान हो। यहाँ तो दो अहम् के बीच रिश्ता हुआ है - टकराव तो होगा ही "
और फिर ये तो दैनिक प्रक्रिया में शामिल हो गया था। समाइरा मैडम का घायल अस्तित्व जो अपन वजूद टिकाये रखने की कोशिश कर रहा था।
मैडम की अक्सर थकी हुई आँखे, काले गहराते आँखों के
इर्द गिर्द के
घेरे बहुत कुछ
बताने लगे थे
उन दोनों के
रिश्तो के बारे में। चाल थोड़ी ढीली सी पड़ने लगी
थी।
बात बात पर झुंझला जाती थी समाइरा मैडम।
सान्वी सोचने लगी
थी - "मैडम का रिश्ता मेरी जिया जितना ही तो है।
दोनों एक दौर
से गुज़र रहे
है। "infancy" के दौर से।
मेरी
जिया तो रात भर जागती है , जागती है , क्या समायरा मेडम भी ..... "
कुछ दिनों से दोनों ज्यादा रोने लगी थी - सान्वी की जिया भी और
समाइरा मैडम की
आँखों की पोरे भी ।
दोनों एक दौर
से गुज़र रही
थी - जहाँ दोनों को
दर्द होता था
- शरीर में या
जेहन में - मगर कह
नहीं पाती थी।
जिया जाने क्यूँ बीमार सी रहने लगी थी, समाइरा मैडम और राघव सर के रिश्ते की तरह ।
" प्रीत! देख न,
मेरी जिया को
क्या हो गया
है। कितनी बीमार रहने लगी है। कुछ
खाती नहीं, दूध नहीं पीती आजकल। मैं
क्या करूँ ?" कहते हुए फफक
फफक कर रो
पड़ी थी सान्वी।
" बड़ी हो रही
है न - इस उम्र में
ऐसा होता है
- तू पहली बार
माँ बनी है
न - इसलिए इतनी परेशान रहती है। सब
के बच्चे ऐसे
ही बड़े होते है" प्रीत ने ढांढस बंधाया था सान्वी को।
फिर अपनी धुन
मे बोली प्रीत " देख न , तेरी जिया भी
चाहकर कुछ कह
नहीं सकती और
अपनी समाइरा मैडम भी। कितनी टूट गई
है। कैसी हो गई
है वो !"
जिया बड़ी हो
रही थी और
मैडम का रिश्ता भी - और simple से complex वर्ल्ड में प्रवेश करने लगे थे।
दोनों ही कहने की कोशिश करने लगे थे - अपने अपनी मन की
बातें
। ये बात अलग
थी -कि सान्वी , जिया की आवाज़ सुनती -खिल उठती और समाइरा मैडम की दबी घुटी आवाज़ कुछ कहती - तड़प उठती। मैडम के करीब कभी
नहीं थी सान्वी, मगर औरत तो
थी न !!
बहुत कुछ एक
सा था - जिया में, समाइरा मैडम और
राघव सर के
रिश्ते में। आखिर दोनों हमउम्र ही
तो थे।
डेढ़ साल की
होने आई थी
जिया, - दाँत निकलने लगे थे
- दस्त और उल्टियां होने लगी थी।
समाइरा मैडम और राघव सर के रिश्ते में
भी दांत निकल आये थे। काट
खाने को दौड़ने लगे थे, वो
दोनों एक दूसरे को।
दोनों के झगडे और उग्र होने लगे थे। अब
समाइरा मैडम बंद
केबिन में नहीं चिल्लाती थी, राघव सर
के ऊपर।
अब तो कहीं भी
- corridor में
, क्लास के बहार, स्टाफ रूम में,
स्टूडेंट्स के सामने कोई लिहाज़ नहीं रखती थी समाइरा मैडम , अपने पद की
गरिमा का या
अपने पति पत्नी के सम्बन्ध का।
बहुत तू-तू
मैं मैं होने लगी थी दोनों में ।
एक फ़र्क़ था सान्वी की जिया में
और उनके रिश्ते में। .. जिया अपने पैरो के सहारे चलने लगी थी और
उनका रिश्ता घुटने टेक चुका था .... घिसट- घिसट कर चलने लगा था उनका रिश्ता।
समाइरा मैडम ने
कभी सान्वी से या
प्रीत से या
किसी और से कुछ
नहीं कहा, कभी
शेयर नहीं की
अपनी प्रोब्लेम्स मगर
- सब कुछ खुला था यहाँ, - एक
नंगा सच - उनके रिश्ते का ।
सान्वी और प्रीत अक्सर बातें करते थे - नहीं बातें नहीं बनाते थे , औरो
की तरह मज़ा
नहीं ले रही
थी दोनों। दुःख होता था दोनों को - हमेशा ही तो
समाइरा मैडम जैसा बनना
चाहा था दोनों ने।
क्या पर्सनालिटी थी
मैडम की , एक
रुतबा था शान
थी उनकी - जिसपर अब जंग लगने लगी थी - उन
दोनों का लोहे सा
अहम् टकरा टकरा कर अब जंग
खाने लगा था।
प्रीत कहती - "राघव सर - अच्छे ही तो थे वे भी। तो कहाँ क्या कौन सा समीकरण अधूरा रह गया होगा,सान्वी? कौन सी पूजा अधूरी रह गई होगी, कौन से गुण दोष मिलाने बाकी रह गए होंगे ??"
अपनी धुन में कहती रही प्रीत - " .... दोनों परिपक्व है - अपनी ज़िम्मेदारियाँ समझते है , फिर कहाँ क्या कौन सी गांठ ऐसी रह गई जो नहीं बंधी या या नहीं खुली!!!! "
यहाँ जिया भी नन्हा सा करिश्मा ही तो थी - जो धीरे धीरे बड़ी हो रही थी। सान्वी और प्रीत - दोनों देख रहे थे - एक नन्ही सी जान - जिया को बड़े होते हुए और दो बड़ो के उस रिश्ते को छोटे होते हुए।
.
.
.
.
कई बार मन हुआ सान्वी का, -हिम्मत करे - पूछ ले - समाइरा मैडम को -मैडम आप ठीक है न ? सब कुछ ठीक है न ?हिम्मत नहीं हुई ...
और उस दिन तो हद ही हो गई !
कॉलेज की पचासवी सालगिरह थी। प्रीत और सान्वी पूरा function हैंडल कर रहे थे।
राघव सर चीफ
गेस्टस में invited थे। दोनों के मतभेद छोड़ दे तो
गज़ब की जोड़ी थी राघव सर
और समाइरा मैडम की। आखिरकार बिज़नस magnet थे वो।
उद्घाटन समारोह था - फूल समाइरा मैडम देने वाली थी राघव सर को। और वो स्टेज पर आई - फूल दिया - दिया क्या, थमा दिया और खा जाने वाली नज़रो से घूरा था उन्होंने राघव सर को। सान्वी और प्रीत धड़कते दिल से ये सब स्टेज पर देख रही थी - जैसे किसी अनहोनी का अंदेशा हो गया था उन्हें।
प्रोग्राम ख़तम हुआ
- नाश्ते का इंतज़ाम था - कांफ्रेंस हॉल में। सारे गेस्ट वही
मौजूद थे - थोड़े बहुत organising समिति के मेंबर भी। सान्वी और प्रीत भी।
सब कुछ ठीक था और फिर अचानक वो अनहोनी हुई जिसका किसी को अंदेशा नहीं था।
कार्नर में ही
तो खड़े थे
दोनों - राघव सर और
समाइरा मैडम - सब
अपनी बातो में
मशगूल थे - और
एक तमाचे की
आवाज़ आई - सब
सन्न रह गए।
समाइरा मैडम अपने गाल पे हाथ लिए
खड़ी थी - गुस्सा , मज़बूरी , बेबसी - लाचारी - उनकी आँखों और
हाव भाव में
दिख रहा था।
राघव ने सरेआम तमाचा मारा था - सरेआम !!!
हक्केबक्के खड़े थे सब - और इस सब के बीच मैडम उठकर बाहर चली गई - फिर वापस प्रोग्राम में नहीं आई। घरेलू मामला था - कोई कुछ नहीं बोला - कोई भी नहीं। मूक-दर्शक बने सब लौट गए।
अगले दिन जब मैडम वापस आई थी -तो जैसे १० साल उम्र और बढ़ गई थी उनकी।
किसी से आँखे नहीं मिलाई - यंत्रवत अपना काम करती रही। टूट गई थी
मैडम।
सबने उन्हें टूटते हुए देखा - कोई कुछ नही कह सका, कर सका !!
अख्खड़ थी तो क्या हुआ - खुद्दार भी उतनी ही थी। किसी के आगे दुखड़ा नहीं रोया अपना। कभी
ज़ार ज़ार नहीं रोई हम में से
किसी के सामने - मगर
अब उनके आँखों के पोरो में
नमी दिखती थी
सब को। दिख
रहा था कि एक खुद्दार इंसान धीरे धीरे घुटने टेक रहा था
रिश्तो को संजोने के लिए।
नहीं, उन्होंने राघव सर से तलाक नहीं लिया - बड़े घरो की मजबूरियां भी बहुत बड़ी होती है। अब वे फ़ोन पर बहस नहीं करती थी। किसी स्टाफ को कुछ नहीं कहती - चुपचाप आती पढ़ाती, निकल जाती।
और यहाँ सान्वी की जिया चुलबुली होने लगी थी - अक्सर घर में चीज़ी यहाँ से वहां उठा कर फेंक देती थी। ज़िया बहुत बाते करने लगी थी - और उधर समाइरा मैडम खामोश सी हो गई थी।
दोनों रिश्ते बड़े हो रहे थे - सान्वी की जिया भी, और समाइरा मैडम और राघव सर का रिश्ता। दोनों के बालो में सफेदी घर कर चुकी है - उम्र का ठहराव आ गया है - लेकिन अहम् में कहीं कोई ठहराव नहीं आया।
प्रीत की शादी हो गई थी - वो तो अब दिल्ली settle हो गई थी । वो भी अपने घर परिवार में व्यस्त हो गई थी ।
हाँ, फ़ोन आते थे
अब भी उसके।
सान्वी पीएचडी करना चाह रही थी - इसी सिलसिले में मैडम के केबिन में गई थी वो।
-" आओ
सान्वी , कैसी हो ? " समाइरा मैडम ने पूछा।
-" मैं अच्छी हूँ मैडम !" - सान्वी बोली।
- " मेरी
प्यारी जिया कैसी है ? बहुत बातूनी है न और नटखट भी। बहुत स्वीट
है! काश! मेरी भी एक ....... ," कहते
कहते समाइरा मैडम की आँखों में आंसू भर आये !
" यस ma’am
, वो तो आप को बहुत पसंद करती है - हमेशा आपको याद करती है। कहती है मैं
मैडम जैसी बनूँगी बड़ी होकर " - सान्वी ने चहकते हुए कहा।
" नहीं , उसे मेरी जैसी मत बनाना ! you dont know what it means to be Samaaira Sanyaal - no, not Sanyaal, its Samaaira Ghosh !! - one needs to pay a very heavy price for it and I pray God , your daughter has a blessed and peaceful life" - मैडम की आवाज़ भर्रा गई थी ! और आँसुओ को छिपाने की कोशिश मे नाकाम , बोली-" now leave , I have some other important files to complete!"
सान्वी भरे मन से निकल आई - अपने आँसू नहीं रोक पाई वो - जी किया बाथरूम में जाकर जी भर के रो ले वो !
रहा नहीं गया सान्वी से। प्रीत को मोबाइल जोड़ा। " प्रीत , सुन न, मैं मैडम के पास गई थी और ....... " कहते कहते रो पड़ी सान्वी !
हाँ यही तो
सच था उनके रिश्ते का।
सब कुछ जैसे ठहर गया था मैडम की ज़िन्दगी में - अब कोई उनके बारे में बात नहीं करता था। आदी हो गए थे सब टूटी हुई - मरी हुई समाइरा मैडम के।
और वक़्त के साथ साथ यहाँ जिया भी तो बड़ी होने लगी थी। बड़े होने लगे थे उसके गुस्से, उसकी ज़िद । सान्वी की जिया १४ बरस की हो गई थी।
सास भी उम्रदराज़ हो गई थी
- बीमार रहने लगी
थी। सान्वी कितने fronts पर जूझती ?
बीमार सास , उदासीन होता पति - ज़िद्दी , गुस्सेल और demanding होती जिया!
अपनी दादी से जिरह करने लगी थी जिया। उस दिन उसकी क्लास की रश्मिता के पापा ने रश्मिता को गैलेक्सी नोट ला कर दिया था।
बस अड़ गई
जिया - " मम्मी, पापा से
कहो मुझे भी
नोट लेकर दे
"
" पर जिया अभी तो तुझे जिओनी मोबाइल खरीद के दिया है पापा ने पिछले महीने और तू कैसे मांग सकती है ?" सान्वी बोली थी।
" मैं कुछ नहीं जानती, मुझे चाहिए, तो चाहिए - बस !!" और धड़ाम से अपने कमरे का दरवाजा बंद कर लिया था जिया ने।
" तुम दोनों ने लड़की को लाड प्यार में सड़ा दिया है - अब भुगतो !" बीमार सास बड़बड़ाई थी अपने कमरे से।
उस दिन खाना नहीं खाया था जिया ने। मन आये ऑफिस से, तो पूछा - " जिया दिखाई नहीं दे रही ?"
सान्वी ने बताया सब कुछ !
-"तुम भी न,
गवार हो तुम
- इतनी बड़ी लड़की से कैसे डील करते है - कुछ
समझ नहीं आता
तुम्हें ?? - बच्चो को क्या ख़ाक पढ़ाती होगी कॉलेज में !!!" मन बरस पड़े
थे सान्वी पर
ही !!! रो पड़ी थी
सान्वी !
और फिर तो ये दिनचर्या सा बन गया था। इतनी उथल पुथल रिश्तो में - इतने उतार-चढ़ाव देख रहे थे उनके पारिवारिक रिश्ते। इतने सालो में कितना कुछ उलझ गया नए रिश्तो की डोरी में बंधकर !
सान्वी अब भी
प्रीत को फ़ोन कर अपना जी हल्का कर लेती थी ।
प्रीत समझाती थी उसे - " सुन, जिया अभी teenage अवस्था में है। इस उम्र में, इस दौर में, ये सब होता है। तू देख, वो बस कुछ साल में समझदार हो जाएगी। टीनएजर लड़की है न! हम भी तो ऐसे ही थे न - याद कर! "
हाँ , हर बचपन को teenage के पड़ाव से होकर ही तो यौवन में प्रवेश करना होता है - यही तो मुग्धावस्था है - जीवन यही है।
सान्वी की जिया- एक नन्ही सी कली
थी, जो अब खिलने लगी थी।
समाइरा मैडम और
राघव सर का रिश्ता का भी तो
करीब करीब teenage अवस्था से गुज़र रहा था ।
मगर .......
जहाँ सान्वी की
जिया - एक अधखिली हुई
कली, एक नया
जीवन थी, वही
समाइरा मैडम और
राघव सर का
रिश्ता teenager होते हुए भी
बूढ़ा सा - मृतप्राय हो चूका था।
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