यूँ तो पुरानी पोस्ट है .. तकरीबन 9/11 - ओह, बाप रे क्या तारीख है - नहीं भई, घबराने की बात नहीं है .. ये तो पिछले साल की ही पोस्ट है. आज ही जो पोस्ट की है एक और कविता, उसमे लिखा था वक़्त ने हमारे शरीर पर बेशक चर्बी का खासा मुलम्मा चढ़ाया है - उसमे भी घोर randomness बरती गई है डिस्ट्रीब्यूशन के मुआमले में .
खैर, बात थी की दिल से हम कभी १६ की कमसिन उम्र पार ही नहीं कर पाए। बहुताय कोशिश करते है मगर अक्सर परिपक्व दिखने की हमारी कोशिश की भैंस, पानी में बैठ जाती है और लाख मनाने पर भी टस से मस नहीं होती .
अब भी ये दिल इतना फरेबी है कि कोई कमसिन सी शक्ल देखी नहीं कि फिसल गया !
(मुआफ कीजिये इस उम्र में ये शब्द 'शोभा' नहीं 'डे'ते - मगर हम इस ' शोभा' को 'शोभा कपूर' और "शोभा डे" बनाकर जीतेन्दर जी और मीडिया हाउस को सौप आये है )
दिल गोया दिल न हुआ, शम्मी कपूर हो गया और गाने लगा " गुलाबी आँखे जो तेरी देखि शराबी ये दिल हो गया ! "
इश्श्श्श ...... ये दिल भी न ! सच में फरेबी हो गया है - कोई तो संभाले इसे भी!
Teenage दिल की बातें
दिल ये फरेबी हो गया
थोड़ा सा lazy हो गया...
हाँ, जबसे तू मुझे मिला..
देखो न, कैसा crazy हो गया ..
उस दिन - जब तुझको देखा !
दिन हो या फिर हो रातें
बस तेरा, ही सपना देखा !
तू ही तो सपनो का मेरे -
"Patrick Swayze" हो गया ....
कितने confused से हम है !
जग सोये - तो जागे हम है !
रुक रुक के चलते हम है
देखो न! world ये मेरा
कैसा ये mazy हो गया ...
तुमसे- जो बात करे तो !
दो पल -भी साथ चले तो !
एक पल को आँख मिले तो !
धक् धक् धड़क के दिल मेरा
देखो न ! कैसा frenzy हो गया!
हाँ हाँ!! दिल ये मेरा
देखो न कैसा crazy हो गया !
हाँ हाँ!! दिल ये मेरा
देखो न कैसा crazy हो गया !
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