दाई ने पैरो से पकड़ा उसे और, चटाक से एक पीछे लगाई- पूरा कमरा उसकी रोने की आवाज़ से भर उठा.
माँ (दादी को माँ कहते थे सब) पर्दा उठाकर उस कमरे घुसी।
"हव वो काकी , लड़की भइ है"
तेरी बहु भी अच्छी है और पोरी भी देख, गोरी-नारी भइ है !"
"फिर से पोरी भइ है !!" - माँ बड़बड़ाई !
" या बखत तो अपन ने सुसीला को भगत भुमका को भी तो बतायो थो। लगापट दूसरी पोरी हुई है सुसीला ख !"
"ला इते दे पोरी ख़ ! मेरे कने !" माँ बोली !
बच्ची का रोना बदस्तूर जारी था ....... चुप होने का नाम ही नहीं ले रही थी - माँ पुचकारती रही देर तक।
मम्मी को जब होश आया तो गोद में थमा दी गई बच्ची मगर रोना फिर भी बंद नही हुआ ......
फिर तो आने वाले समय में मम्मी ने माँ की, चाची सास , बुआ सास , मौसी सास , मामी सास औरों तमाम सासों , जिठानियों , ननदो, भाभीयों - कुल मिला कर कुनबे की सब औरतो की, तमाम तरह की बातें सुनी ... ताने सुने !
वजह ?
उसके बाद और तीन बहनो को अवतरण हुआ उस घर में ....... और फिर सबसे छोटा भाई आया था।
यानी समीकरण था - दो भाई और पांच बहने!
लोग कहते - "उफ़्फ़, इतने बच्चे ?"
" हाँ भई , इतने सारे बच्चे! आपको प्रॉब्लम है कोई? नहीं न!!! अपना रास्ता नापिये - चलिए बढिए !!" - यही जवाब होता घरवालो का !
मगर फिर दस साल ...... बीस साल..... तीस साल, अमां पैंसठ -सत्तर साल गुज़र गए है।
वो लड़की - जो बच्ची से - लड़की से युवती, फिर औरत से बुढ़िया हो कर मर गई - लेकिन मरते दम तक उसका रोना बदस्तूर जारी रहा .....
न जाने क्यों ???
क्या औरते रोने के लिए ही बनी है ??
माँ (दादी को माँ कहते थे सब) पर्दा उठाकर उस कमरे घुसी।
"हव वो काकी , लड़की भइ है"
तेरी बहु भी अच्छी है और पोरी भी देख, गोरी-नारी भइ है !"
"फिर से पोरी भइ है !!" - माँ बड़बड़ाई !
" या बखत तो अपन ने सुसीला को भगत भुमका को भी तो बतायो थो। लगापट दूसरी पोरी हुई है सुसीला ख !"
"ला इते दे पोरी ख़ ! मेरे कने !" माँ बोली !
बच्ची का रोना बदस्तूर जारी था ....... चुप होने का नाम ही नहीं ले रही थी - माँ पुचकारती रही देर तक।
मम्मी को जब होश आया तो गोद में थमा दी गई बच्ची मगर रोना फिर भी बंद नही हुआ ......
फिर तो आने वाले समय में मम्मी ने माँ की, चाची सास , बुआ सास , मौसी सास , मामी सास औरों तमाम सासों , जिठानियों , ननदो, भाभीयों - कुल मिला कर कुनबे की सब औरतो की, तमाम तरह की बातें सुनी ... ताने सुने !
वजह ?
उसके बाद और तीन बहनो को अवतरण हुआ उस घर में ....... और फिर सबसे छोटा भाई आया था।
यानी समीकरण था - दो भाई और पांच बहने!
लोग कहते - "उफ़्फ़, इतने बच्चे ?"
" हाँ भई , इतने सारे बच्चे! आपको प्रॉब्लम है कोई? नहीं न!!! अपना रास्ता नापिये - चलिए बढिए !!" - यही जवाब होता घरवालो का !
मगर फिर दस साल ...... बीस साल..... तीस साल, अमां पैंसठ -सत्तर साल गुज़र गए है।
वो लड़की - जो बच्ची से - लड़की से युवती, फिर औरत से बुढ़िया हो कर मर गई - लेकिन मरते दम तक उसका रोना बदस्तूर जारी रहा .....
न जाने क्यों ???
क्या औरते रोने के लिए ही बनी है ??
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