अंधेरो से क्यूँ जाने सुलह न हुई इस दिन की फिर कोई सुबह न हुई हम सफ़र में रहे, हमसफ़र न हुए साथ चलते रहे पर कलह न हुई मिन्नते की बहुत, की बहुत आजिजी उम्र गुज़री पर उनसे सुलह न हुई थे हबीब हम तो कैसे रक़ीब हो गए वक़्त गुज़रा है तुमसे जिरह न हुई है ख़फ़ा ज़ि...
No comments:
Post a Comment