चाँद , ख्वाब रात, चांदनी तारे आसमान - कोई भी शायर ऐसा न होगा जिसने गाहे - बेगाहे इनकी बात न की हो
कर शरारत चाँद भागा
ताना बाना हो ख्वाबो का - रातों का - सियाह घुप्प अंधेरो का , या फिर दूज का चाँद या चौदहवी का चाँद!
हम चाँद की बाते और किस्से कहने लगे तो शायद सदियाँ कम पड़ेंगी ।
हमने भी कई रूप में को लिखा है चाँद को - एक सखा के रूप में , मेहबूब के तौर पर , माँ की निगाह से, जब मेरे बेटे ने ख्वाहिश की थी की -"माँ, चाँद चाहिए !! "
पर जनाब, ये चाँद तो चाँद ही है ....
और उस रात तो हद कर दी इन साहब ने - चाँद ने ! हम थे, हमारा ख्वाब था - और ख्वाबो में हमारे वो ! बस इन साहब को रास नहीं आया !! पर्दा खोला, घुस गए कमरे में और पूरा कमरा जैसे चांदनी से नहा उठा ! और होना क्या था ?
साहब - नींद उचट गई हमारी - ख्वाबो का धागा - वही टूट गया - और मेरे वो ?? - वो गुम हो गए कहीं !
बहुत गुस्सा आया हमें !!
बस, गुस्से में भागे, इस निगोड़े चाँद के पीछे - ठहर बदमाश ! अभी टांग तोड़ती हूँ तेरी - बताती हूँ तुझे !!
बस, गुस्से में भागे, इस निगोड़े चाँद के पीछे - ठहर बदमाश ! अभी टांग तोड़ती हूँ तेरी - बताती हूँ तुझे !!
हाहाहाहा - कल्पनाये - इनकी कोई सीमा नहीं होती !!!
पेश है
कर शरारत चाँद भागा
तोड़ ख़्वाबों का वो धागा
मैं भी चाँद के पीछे भागी
उस रोज़ सारी रात जागी
चाँद मुझको मुँह चिढ़ायें
गोल गोल आँखें मटकायें
मैंने कहा क्यूँ ख़्वाब तोड़ा
शीशे से क्यूँ पत्थर को तोड़ा
देखो मुझ संग रात रोई
जाने अबके वो भी न सोई
चाँद कहे- मैंने, की ठिठोली
तू तो उनकी कब से हो ली
रस्मों-रिवाजों से क्यूँ बंधी है
सागर वो तेरा, तू नदी है
प्यार का बंधन सबसे जुदा है
है एक इबादत वो बस ख़ुदा है
मैंने कहा - चाँद तू हुआ सयाना
है प्यार क्या ये तो तुझसे ही जाना!
No comments:
Post a Comment