छोटे से कसबे की रहने वाली हूँ मैं - मध्य प्रदेश का जिला बैतूल और क़स्बा - आमला !
खेतों में रही हूँ - बहुत पसंद है हरियाली - पेड़ो पर चढ़ना , फल चुराना - इन शरारतों से भरा रहा बचपन !
खुद अपने (of course पापा के ) खेत है - रिश्तेदारों के खेत है, घर से पाँच मील दूर - बस सभी भाई बहनों के साथ चल पड़े खेतो में !
वो गन्ने के खेत - वो घानी में पकता हुआ गुड़- उसकी मीठी सुगंध!
वो गन्ने के खेत - वो घानी में पकता हुआ गुड़- उसकी मीठी सुगंध!
आटे के लाडू - जिन्हें मैं आज खाऊ तो शायद मेरी बत्तीसी हिल जाए मगर उस वक़्त जाने बस कितने ही ऐसे लड्डू खा जाते थे।
बुआ का खेत पहले आता है हमारे खेतों से ...
वहां बेर, चने की भाजी , मटर , गन्ने चुरा के खाना ! और फिर दादा जी (बुआ के ससुर )का दहाड़ना - "पोरी हुन ! "
और वो सरपट भागना हम लोगो का - हँसते हुए ..
आज भी याद आता है वो सब कुछ ..
याद है मुझे, उन दिनों कॉलेज में थर्ड या फोर्थ ईयर होंगी।
मेहसाणा (गुजरात) में पोस्टेड थे पापा। पापा प्रिंसिपल थे केंद्रीय विद्यालय के वहां !
हमारी कॉलोनी में ही स्कूल और घर था और बहार ONGC का ऑफिस ! बहुत सारे आम के पेड़ ऑफिस कैंपस में।
मैं, मेरी तीन छोटी बहने, छोटा भाई , प्रकाश मैडम की दोनों बेटियां - सोनिया और मिन्ना ,आम चुराने गए थे !
पेड़ पर चढ़ने में उस्ताद तो मैं ही थी !
और फिर वो हुआ, जो नहीं होना चाहिए था - चौकीदार आ गया !!
हे भगवान - सब इधर उधर भाग गए - और मैं ?
मैं तो ऊपर टँगी थी पेड़ की डाली से चिपकी हुई - डरी हुई !
हिलडुल भी नहीं सकती - चौकीदार डंडा लेकर आया था।
चिल्लाया - "अब दोबारा नज़र आये तो टाँगे तोड़ दूंगा !"
चिल्लाया - "अब दोबारा नज़र आये तो टाँगे तोड़ दूंगा !"
मेरी तो साँसे अटकी हुई थी !
शुक्र है भगवन का -उसने एक भी बार ऊपर नहीं देखा !
उस दिन समझ आया - जान बची और लाखो पाए का मतलब !
उफ्फ !
लेकिन, फिर भी, पेड़ो पर चढ़ना , फल चुराना शादी के बाद तक बदस्तूर जारी रहा ... सोसाइटी की औरते अक्सर घूरती रहती थी मुझे - कैसी लड़की (औरत - who cares !) है !!
बस वही सब यादे है। बाते है।
आज भी खुली लम्बी तनहा सड़क पर अक्सर निकल पड़ती हूँ - खाली हरे मैदानों को ताकते हुए -
आज भी खुली लम्बी तनहा सड़क पर अक्सर निकल पड़ती हूँ - खाली हरे मैदानों को ताकते हुए -
निकल पड़े है खुल्ली सड़क पे
जपते देखो नाम राम के
दौड़ लगाए पगडण्डी संग
उनकी बाँहें थाम थाम के
उनकी बाँहें थाम थाम के
पेड़ों की शाख़ों से उलझे
लाल नीले पत्ते पीले से
लाल नीले पत्ते पीले से
फूल खिले है डाली डाली
कैसे कैसे ताम झाम के
कैसे कैसे ताम झाम के
अनमना सा है अनबूझा सा है
दिनभर से ये दिन
दिनभर से ये दिन
पहर हो वो सुबह के या
पहर हो फिर शाम शाम के
पहर हो फिर शाम शाम के
सुबह हुई काम पे निकले,
पंछी इसां सब तमाम वे
बैठा रहे निठल्ला ये दिन,
बिना किसी भी काम धाम के
पंछी इसां सब तमाम वे
बैठा रहे निठल्ला ये दिन,
बिना किसी भी काम धाम के
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