ख़्वाब - कितना खूबसूरत शब्द है न ये !
ख़्वाब अधूरे हो जाए पूरे
एक नशा सा है इस लफ़्ज़ में। .... एक खुमारी है ..... एक आलम है मदहोशी का जिसमे हर वक़्त जी लेने को जी करता है .....
ऐसा लगता है मानो एक खुशबु सी फैली है चार सूं और गहराते हुए सियाह से उजाले और धुंधलाते हुए से घुप्प उजले से अँधेरे।
एक नरम सी ठंडक है और गर्म से उजाले न जाने कितने ही किस्से कहानियों में इन अहसासों के बारे में पढ़ा है सुना है
बस वो अहसास जैसे किसी सर्द आसमा तले रज़ाइयों में दुबकी बैठी जिस्मो की वो गर्माहट। ..... या फिर सफ़ेद बर्फ से ढकी हुई पहाड़ियों में एक दूसरे पर बर्फ का गोल बना कर फेकने का वो ठंडा सा अहसास ....
न जाने कितनी परिभाषाएं है इन ख्वाबो की ....
कहाँ कहाँ बसते है ये ख्वाब .... झेलम की तलहटी में ...... चिनारों के पेड़ो के नीचे ... हरी भरी लॉन में . या फिर समुन्दर किनारे जब अलसाई हुई लहरें किनारो को कहती है .... उठो भी ..मुझे तुम्हे बाँहों में भरना है ..... वो दूर तक मीलों तक फैले हुए मगर कहीं न जाते हुए वो रास्ते जब किसी राही का इंतज़ार करते है ... वो अहसास है ख्वाब ...
जागते रहते हुए भी कहीं और खो जाना और नींदों में सोते हुए भी किसी की यादो में जागते रहना। .. बस यही तो है ख्वाब ..... कुछ न होते हुए भी सब कुछ होने है अहसास और सब कुछ होते हुए भी कुछ न होने का अहसास ....
सब कुछ आधा आधा सा .... वो आधा आधा पूरा सा और वो पूरा पूरा आधा सा .......
ऐसा लगता है मानो एक खुशबु सी फैली है चार सूं और गहराते हुए सियाह से उजाले और धुंधलाते हुए से घुप्प उजले से अँधेरे।
एक नरम सी ठंडक है और गर्म से उजाले न जाने कितने ही किस्से कहानियों में इन अहसासों के बारे में पढ़ा है सुना है
बस वो अहसास जैसे किसी सर्द आसमा तले रज़ाइयों में दुबकी बैठी जिस्मो की वो गर्माहट। ..... या फिर सफ़ेद बर्फ से ढकी हुई पहाड़ियों में एक दूसरे पर बर्फ का गोल बना कर फेकने का वो ठंडा सा अहसास ....
न जाने कितनी परिभाषाएं है इन ख्वाबो की ....
कहाँ कहाँ बसते है ये ख्वाब .... झेलम की तलहटी में ...... चिनारों के पेड़ो के नीचे ... हरी भरी लॉन में . या फिर समुन्दर किनारे जब अलसाई हुई लहरें किनारो को कहती है .... उठो भी ..मुझे तुम्हे बाँहों में भरना है ..... वो दूर तक मीलों तक फैले हुए मगर कहीं न जाते हुए वो रास्ते जब किसी राही का इंतज़ार करते है ... वो अहसास है ख्वाब ...
जागते रहते हुए भी कहीं और खो जाना और नींदों में सोते हुए भी किसी की यादो में जागते रहना। .. बस यही तो है ख्वाब ..... कुछ न होते हुए भी सब कुछ होने है अहसास और सब कुछ होते हुए भी कुछ न होने का अहसास ....
सब कुछ आधा आधा सा .... वो आधा आधा पूरा सा और वो पूरा पूरा आधा सा .......
इसलिए तो चाहा है हमेशा ....
ख़्वाब अधूरे हो जाए पूरे
नींद करे क्या जतन
गिरहे न सुलझे इन ख़्वाहिशों की
कैसी है क्यों है उलझन
आँखो में फैले है धुँधले उजाले
सुबह में ठंडी जलन
रातों की , लम्बी तन्हा जुदाई
क्यूँ सहे ये नयन
साँझ ढले से साँझ है बैठी
दिन की लेकर थकन
सूरज का भी जलते जलते
टूट गया है बदन
चाँद के गालों पे फैली है
धूप की ठंडी जलन
फिर भी मिलेंगे शाम को दोनो
तय है उनका मिलन
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