29 July 2016

एक बूँद है इश्क़ की और चार पेग शराब


शराब हो या इश्क़ - दोनों बड़े कमबख्त और ज़िद्दी चीज़ है ! अव्वल लत लगती नहीं - मगर जब लत लग जाए - दोनों उतरती ही नहीं !! 

इश्क़ के बुखार से तो हम गत  ४० बरसो से ग्रस्त है ( उम्र ४५ है) पांच साल इसलिए बचे रह गए -क्योंकि ये बला  क्या है - पता ही नहीं था वरन वो पांच सालो में भी हमने कर लेना था इश्क़!
अब किससे किया इश्क़ ? भई सवाल टेढ़ा है - अब जिनका नाम ले - उन्हें दुःख - न ले उन्हें दुःख !
वो क्यूँ भला ? 
बताते है - बताते  है- ज़रा गिनने तो दीजिये कुल कितने थे ?
भई, हम गणित में हमेशा होशियार थे और इश्क़ के  मामले  हो तो फिर पूछिये ही मत !
होंगे दर्जनों। .. नही नहीं। . थोड़े से ही  ज्यादा होंगे ! 

अब उस लड़के को भी  तो गिनना पड़ेगा जो दूर उस  टीले (आमला  - लेबर कैंप से दूर - रामचरण की दूकान के सामने वाला टीला) पर भेड़ बकरी  (इतनी दूर से हमें पता नहीं चल पाया हालाँकि  वो भेड़  थी, बकरिया थी या कुछ और ही !) चराया करता था।  हमने उसे कभी पास से नहीं देखा तो क्या -अच्छा तो लगता था हमें - कौन जाने क्यों!

फिर वो अज्जु - वराठे सर का बेटा - साथ ही तो पढता था - By God - बड़ा काला  था - मगर हमसे जल्दी और ऊपर तक अमरुद के पेड़ो पर चढ़ जाता था - उल्टा भी लटक जाता था ! हमने कोशिश की एक दो बार ! मगर एक बार पेट में ज़ोरदार रगड़ा खाया  और दूसरी बार उंगलिया कट गई - जब गिरे ऊपर से और बीच में नायलॉन की रस्सी आई -पकड़  लिया ! 

ऐसे कितने  इश्क़ के  फितूर चढे , उतरे या उतार दिए गए

  hahahahaha.....    

ओह ये क्या ?

हम तो बचपन में ही उलझ गए - चलिए  एकता कपूर वाले किसी सीरियल  की तरह हम भी  एक लीप लेते है - ३०-३५ सालो की लीप !
 अsssssss...........तो ये लीजिये,  आ गए हम वर्तमान में !
यूँ तो दिल की माली  हालत कभी अच्छी नहीं रही लेकिन विगत वर्षो में bedridden अवस्था में थी 


बस तब ही लगा ये शौक ,  पीने का !!
शौक कहेंगे इसे ? पता नही - क्या फ़र्क़ पड़ता है!  
हमें तो नफरत थी पीने वालो से भी और पिलाने वालो से भी। . मगर वक़्त देखिये जनाब कैसे रंग बदलता है - जो चीज़े नागवारा थी - उन्ही से मोहब्बत हो गई ! 
सही कहते है बुजुर्ग - समय बड़ा बलवान होता है !

चार पेग ?
अब तो "यो -यो हनी  सिंग"  साहब भी कहते है - चार बोतल वोदका - काम मेरा रोजका ! भाई फिर हम क्यूँ अपवाद होने लगे - आखिर ज़माने से कदम से कदम मिलकर भी चलना है ! 
लेकिन हम तो यही कहेंगे  -रब्बा,  इश्क़ न होवें  !!  


एक बूँद है इश्क़ की और चार पेग शराब
सर चढ़ कौन है बोलता तय कीजिए जनाब

चंद बोलियाँ प्यार की, प्यार के कुछ अल्फ़ाज़
चार दिन का प्यार था -बस कर दिया हिसाब !

कुछ उनसे भी ख़ता हुई, कुछ हम थे नामुराद
सरे महफ़िल वो कह गए -हाँ ,तुम ही हो ख़राब !

साँझ सिसकतीं रह गई, गुज़री वो भी रात
बाद उस रात के, चाँद पे आया नहीं शबाब

टुकड़ा टुकड़ा ख़्वाहिशें और टुकडे टुकड़े ख़्वाब
वक़्त , वक़्त -वक़्त पे सेंकता जैसे हो कबाब

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