देख के दिल मे हूंक उठी
मच उठी कोई हलचल सी
है हँसी कुछ दबी हुई सी
खनक है उसमे पायल सी
एक जुर्म हुआ अधूरा सा
मच उठी कोई हलचल सी
है हँसी कुछ दबी हुई सी
खनक है उसमे पायल सी
एक जुर्म हुआ अधूरा सा
एक सज़ा मिली मुककममल सी
वो हिज्र की ठंडी रातों मे
यादे हुई जैसे कंबल सी
खुशियाँ जैसे हो किश्त किश्त
कतारें गम की मुसलसल सी
ख्वाहिशों की एक होड़ लगी
ज़िंदगी गोया एक दंगल सी
हवा को खुद का होश कहाँ
फिरती है वो एक पागल सी
फिरती है वो एक पागल सी
जो था अपना सब होम किया
ख़ुश्बू फैलाई सन्दल सी
'साँझ सवेरे', फलक पे उसकी
हस्ती आवारा बादल सी
'साँझ सवेरे', फलक पे उसकी
हस्ती आवारा बादल सी
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