इश्क़ क्या किया मैंने ...
इश्क़ क्यूँ किया मैंने ...
चढ़ गई मैं तो सलीब ...
रब्बा...चढ़ गई मैं तो सलीब ...
बेक़रारी सीने में
क्या मज़ा है जीने में
तू जो न मेरे क़रीब ...
क्या है तख़्त ताज़ में
न राग कोई साज़ में
तू जब न मेरा हबीब ..
हाथ थाम कर मेरा ...बन जा तू मेरा नसीब
रब्बा...चढ़ गई मैं तो सलीब ...
साँस साँस मद्धम है
नींद भी तो कम कम है
रोग लगा ये अजीब ...
किसकी प्यास जागी है
कैसी आस लागी है
दिल हुआ एक रक़ीब
मुझ को मुझ से छीन कर ...न कर मुझको ग़रीब
रब्बा ...चढ़ गई मैं तो सलीब ...
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