27 May 2016

Gazal


तसव्वुर, ख़्वाब, उलफ़त या मुहब्बत से सजा मुझको
न तेरे दीद को तरसूँ नज़र में यूँ बसा मुझको

ख़बर मुझको नहीं मेरी , कहीं यूँ लापता हूँ मैं
तुझे है पा लिया जबसे न जाने क्या हुआ मुझको

हवायें गुनगुनातीं हैं कई क़िस्से बहारों के
ज़मीं आकर कहे मुझसे मिलें दोनो जहाँ मुझको

उठीं है ये सदाएँ फिर न जाने किसके होंठों पर
कहीं कोई फ़रिश्ता है जो देता है दुआ मुझको

सुनो ऐ 'साँझ' -जो आऊँ न वापस इस सफ़र से मैं
कभी जो याद आऊँ मैं सितारों से बुला मुझको

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