27 May 2016

ज़मीं पैरों तले पसरी है लेकिन सर पे अम्बर है



ज़मीं पैरों तले पसरी है लेकिन सर पे अम्बर है
बहुत है हौसला उड़ने का मगर अपने कहाँ पर है

वो जो बस्ती के कोने पर कोई पतली गली सी है
बहुत ही दूर है लेकिन वहाँ पर चाँद का घर है

ठिठक कर धूप ठहरी है कहीं पेड़ों के सायों में
उजालों के कहीं बिस्तर कहीं छावों की चादर है

पहाड़ों से चलें आए जो ये पानी के झरने है
समुन्दर को तरसते की वो झरनो का मंज़र है

बिछड़ जातें कभी जो लोग वापस क्यूँ नहीं आते
कभी भीगीं हुई आँखें कभी यादों के ख़ंजर है

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