सपने ऐसे बुन ...मेरे मनवा रे
टूट कर टूटें न
धागे ऐसे चुन..... मेरे मनवा रे
कोई सपना देखा ....टूट गया
ख़्वाबों में वो मुझसे ...रूठ गया
बाँध कर छूटे न
ग़िरह ऐसी बुन ....मेरे मनवा रे
हाथों में से कुछ लकीरें ...छूट गई
क़िस्मत थी जैसे मटकी ...फूट गई
बन के फिर फूटे न
क़िस्मत ऐसी चुन ....मेरे मनवा रे
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