27 May 2016

मेरे मनवा रे



सपने ऐसे  बुन ...मेरे  मनवा रे
टूट कर टूटें न
धागे ऐसे चुन..... मेरे मनवा रे

कोई सपना देखा ....टूट गया
ख़्वाबों में वो मुझसे ...रूठ गया
बाँध कर छूटे न
ग़िरह ऐसी बुन ....मेरे मनवा रे

हाथों में से कुछ  लकीरें ...छूट गई
क़िस्मत थी जैसे मटकी ...फूट गई
बन के फिर फूटे न
क़िस्मत ऐसी चुन ....मेरे मनवा रे

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