27 May 2016

ज़िंदगी का हाथ थामे


ज़िंदगी का हाथ थामे

चल पड़े क़िस्से पुराने



कितने रस्ते मुड़ गए ये
कितनी राहें रुक गए ये
हर मोड़ पर देकर सदा ये
लगे तेरी बातें  बताने



रूमालों में तुड़ -मुड़ गए ये
जिल्द में कुछ छिप गए ये
चले आए कब ये मुँह उठाए
क्यूँ कहाँ ये कोई न जाने


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