10 April 2016

मेरे यार जुलाहे



सपने ऐसे  बुन मेरे यार जुलाहे
टूट कर टूटें न
तार ऐसे चुन मेरे यार जुलाहे


कोई सपना देखा
टूट गया
ख़्वाबों में वो मुझसे
रूठ गया
बाँध कर छूटे न
ग़िरह ऐसी बुन मेरे यार जुलाहे


हाथों में से कुछ  लकीरें
छूट गई
क़िस्मत थी जैसे मटकी
फूट गई
बन के फिर फूटे न
क़िस्मत ऐसी चुन मेरी यार जुलाहे

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