सपने ऐसे बुन मेरे यार जुलाहे
टूट कर टूटें न
तार ऐसे चुन मेरे यार जुलाहे
कोई सपना देखा
टूट गया
ख़्वाबों में वो मुझसे
रूठ गया
बाँध कर छूटे न
ग़िरह ऐसी बुन मेरे यार जुलाहे
हाथों में से कुछ लकीरें
छूट गई
क़िस्मत थी जैसे मटकी
फूट गई
बन के फिर फूटे न
क़िस्मत ऐसी चुन मेरी यार जुलाहे
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