13 March 2016

Say na something ...




इन हवाओ  को छू लूँ  क्या मैं 
बोलो ना ...

बाँहों में आसमा ये  ले लूँ क्या मैं , 
बोलो ना ...


वो दूर दूर फैली 
जो  नीली उलझने है 
चिनारों में फिसलकर 
झीलों से बोलती है 
 वो क्या बोलती है,  
बोलों ना ...


रातों  के  दिल  में  भी कुछ 
दबी  सी  ख़्वाहिशें है 
वो साँझ और सुबह के
कानों में बोलती  है 

वो  क्या बोलती  है,  
बोलों ना ...



खिड़कियों से छनके
आई सुनहरी धूप  है जो 
आहातो में खिलखिलाकर 
कुछ तो बोलती है 
वो  क्या बोलती  है,  
बोलों ना ...

 ये सिरफ़िरी सी राहें 
बलख़ा के मुड़ रही है   
राही से, मंज़िलो से,  
रह रह के बोलती  है 

वो  क्या बोलती है,  
बोलों ना ...




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