करके शरारत चाँद भागा
तोड़कर सपनों का धागा
मैं भी चाँद के पीछे भागी
उस रोज़ सारी रात जागी
मैंने चाँद को धर दबोचा
-क्यूँ भला तूने कुछ न सोचा ?
चाँद मुझको मुँह चिढ़ाए
गोल गोल आँखे मटकाए
मैंने कहा -तू है निगोड़ा
क्यों शीशे से पत्थर को तोड़ा?
चाँद हँसा फिर खिलखिलाकर
हौले हौले सपनों को उठा कर
फिर सजा दिए पलकों पे मेरे
कुछ ख़्वाब मेरे जो थे सुनहरे
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