13 March 2016

शरारत की चाँद ने

करके शरारत चाँद भागा 
तोड़कर सपनों का धागा 

मैं भी चाँद के पीछे भागी 
उस रोज़ सारी रात जागी 

मैंने  चाँद को धर दबोचा
-क्यूँ  भला तूने कुछ न सोचा ? 

चाँद मुझको मुँह चिढ़ाए 
गोल गोल आँखे मटकाए 

मैंने कहा -तू है निगोड़ा 
क्यों शीशे से पत्थर को तोड़ा?

चाँद हँसा फिर खिलखिलाकर 
हौले हौले सपनों को उठा कर  

फिर सजा दिए पलकों पे मेरे 
कुछ ख़्वाब मेरे  जो थे सुनहरे 






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