13 March 2016

अब रेत हो गई





वक़्त ने तोड़ी  ऐसे हस्ती मेरी 
पत्थर की थी, अब रेत हो गई 

खुशियों की एक धरती थी मेरी 
अब बंजर सूखा सा खेत हो गई 

कि बोझ उठाना था  इस   घर का 
कोमल घास सी थी, मैं  बेंत हो गई 

जब तक हाथ चले,  सब खुश थे 
अब बूढी हूँ तो एक  भूखा  पेट हो गई 














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देख उसे हुआ पत्थर सा
मैं भी कुछ पत्थर सी हो गई।
सोच ये कि दोनों टकराते है जब
कई चिंगारियां आग हो गई।

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