पूछती हूँ मैं अपने हर कदम से सदा
तुम वहाँ क्यूँ पड़े, तुम जहाँ हो पड़े ?
थी कतारें वहाँ पर, ज़ख़्म ही ज़ख़्म की
हम जहाँ, जिधर भी, जिसके द्वारें खड़े
किस्सा-ए-कहानी, ये दुनिया नहीं थी
पर उखाड़े है जब भी, निकले मुर्दे गड़े
दुश्मनों की तो कोई कमी ही नहीं थी
मिले दोस्त जो भी, वो थे सयाने बड़े
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