11 January 2016

गुज़रे थे जो संग लम्हे, उनका हिसाब कर ले।



इन कोरे सफ़ों  का थोड़ा  लिहाज़ कर ले, 
अपने किस्सों को आओ, किताब  कर ले। 

हर दाग़ पूछता है अपने   ज़ख़्म की  कहानी, 
ज़िन्दगी तू अब सवालों को  ही जवाब कर ले। 

अब आईने में मुझको, चेहरा नज़र न आये, 
कहता है आइना तू  खुद से हिजाब कर ले।  

कोई नहीं है अब तो यादों को  रोने वाला,
समझौता ग़मो से  खुद ही  जनाब कर ले।  

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