8 December 2015

उजाले अँधेरों से मिलने जो आये


उजाले अँधेरों से मिलने जो आये
धुंधलाने  गए तब, शामों  के साये  ..

समय की सुराही  में समय  के ये हिस्से,  
पलो की मानिंद फिसलने लगे है।  
यादो की स्याही बिखरी जाए  ....
धुंधलाने  गए तब, शामों  के साये  ..

नानी का आँचल, पकड़कर ये किस्से 
परियों के देशो में पलने लगे है 
बनके सुनहरे ख्वाबों सा पलकों में आये 
धुंधलाने  गए तब, शामों  के साये  ..

नीले से अम्बर के फटे से ये खिस्से 
तारे भी इनसे अब गिरने लगे है 
चंदा सब को संजोने यूँ आये 
धुंधलाने  गए तब, शामों  के साये  ..

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