6 December 2015

उलझा उलझा सा ... क्यूँ मन लगे ?



उलझा उलझा सा ... क्यूँ मन लगे ?
बहका बहका सा ..क्यूँ आलम लगे ?

आधा आधा सा .. पूरा सा चाँद ..
काली  रातों का .. गोरा सा चाँद.. 
चाँद खुबसूरत सा .. बालम लगे। 
बहका बहका सा ...आलम लगे। 
 
पानी सी सूखी   हूँ  ... सीली भी   हूँ ...
रेतों के मानिंद मैं ... गीली भी हूँ ...
दहका दहका सा .... ये सावन लगे ।
बहका बहका सा ...आलम लगे।


मंजिले है मेरी क्यूँ ...यूँ गुमशुदा ?
जाना मुझको कहाँ - किसको पता ?
तनहा सा ये सफ़र - जालम लगे ।
बहका बहका सा ... आलम लगे ।



No comments: