13 December 2015

रंजिशों का सामान सा देखा …

रंजिशों का सामान सा देखा
हर ख्वाहिश को यूँ पशेमान सा  देखा

यूँ तनहा तनहा, मेरी रातें  रोइ !!
नींदें  मेरी ये, न जागे न सोई  ..
हमने जिस  आँख में देखा ...
एक दर्द का दरिया सा  देखा ...
हर ख्वाहिश को यूँ पशेमान  सा देखा ...

क्या, कैसे मेरे, हालात कहे अब  ??
खुद ही, खुद से न बात करें अब
हमने कोई इंसान जो देखा
सब  को खुद से  रूसवा देखा
हर ख्वाहिश को यूँ पशेमान  सा देखा ...

कहने को  कितने, हमदम थे मेरे
रात दिन और सांझ  सवेरे
मिटते लक्ष्मण की रेखा को देखा

छुपे आस्तीनों में है,  खंजर देखा

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