12 December 2015

कुछ रिश्ते ... क्या जाने क्यूँ ??

सेंकते है धूप कुछ रिश्ते ... 
और कुछ रिश्तों को ..
कभी उजाले नसीब नहीं होते !! 
क्या जाने क्यूँ ??

कुछ दिल के 
बहुत करीब होते है रिश्ते !! 
कुछ पास रहकर भी 
कभी करीब नहीं होते !! 
क्या जाने क्यूँ ??

कुछ रिश्तें 
कोयले की गर्म राख से होते है, 
जलकर बुझे हुए ..... 
जल चुके है … बुझ चुके है!!
फिर भी नरमाहट है इनमे ..... 
गर्माहट है इनमे … 
क्या जाने क्यूँ ??

कुछ रिश्ते 
अधजले कोयलें से होते है .. 
जलाते भी है लोग .... बुझाते भी है लोग!!
अपनी सहूलियत से 
जलाते है इन्हें ... 
कि उनके ठन्डे जिस्म को एक आग मिले
और कोई अनबुझी सी 
एक प्यास बुझे ........ 
और बदनामियों के डर से 
फिर बुझा देते है -
फिर से जलाने के लिए  
क्या जाने क्यूँ ??

कुछ रिश्ते - 
गीली लकड़ी से होते है ...... 
सुलगते ही रहते है ....... 
न जलते है ....... न बुझते है !!!!
बस, धुँआ से है!!!!
न जी पाते है......... 
और न मर पाते है ....... 
सिर्फ कोशिश करते है… जलते रहने की 
और उस धुएँ से 
जलती है आँखे ....... 
रोती है आँखे … 
और कभी कभी तो ........ 
रूँध जाती है साँसे - सदा के लिए ........ 
क्या जाने क्यूँ ??















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