यूँ तो पुरानी पोस्ट है .. तकरीबन 9/11 - ओह बाप रे क्या तारीख है - नहीं भई घबराने की बात नहीं .. ये तो पिछले साल की ही पोस्ट है . आज ही जो पोस्ट की है एक और कविता उसमे लिखा था वक़्त ने हमारे शरीर पर बेशक चर्बी का खासा मुलम्मा चढ़ाया है - उसमे भी घोर randomness बरती गई है डिस्ट्रीब्यूशन के मुआमले में .
बहुताय कोशिश करते है मगर अक्सर परिपक्व दिखने की हमारी कोशिश की भैंस, पानी में बैठ जाती है और लाख मनाने पर भी टस से मस नहीं होती . अब भी ये दिल इतना फरेबी है कि कोई कमसिन सी शक्ल देखी नहीं कि फिसल गया !
(मुआफ कीजिये इस उम्र में ये शब्द शोभा नहीं देते - मगर हम इस ' शोभा' को 'शोभा कपूर' और "शोभा डे" बनाकर जीतेन्दर जी और मीडिया हाउस को सौप आये है )
दिल गोया दिल न हुआ, शम्मी कपूर हो गया और गाने लगा " गुलाबी आँखे जो तेरी देखि शराबी ये दिल हो गया ! "
इश्श्श्श ...... ये दिल भी न ! सच में फरेबी हो गया है - कोई तो संभाले इसे भी!
Teenage दिल की बातें
दिल ये - फरेबी हो गया .
थोड़ा सा lazy हो गया...
हाँ, जबसे तू- मुझे मिला..
देखो न, कैसा crazy हो गया ..
उस दिन - जब तुझको देखा !
फिर बस दिन हो या हो ये रातें-
बस तेरा ही सपना देखा !
तू ही मेरे इन सपनो का -
"Patrick Swayze" हो गया ....
कितने confused से हम है !
जग सोये - तो जागे हम है !
चलते भी रुक रुक के हम है
देखो न! -world ये मेरा
कैसा ये mazy हो गया ...
तुमसे- जो बात करे तो !
दो पल -भी साथ चले तो !
एक पल को आँख मिले तो !
दिल मेरा धक् धक् धड़के के -
देखो न ! frenzy हो गया …
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