10 November 2015

जब से अनजान हुए है -- हम तो बेजान हुए है

जब से अनजान हुए है 
हम तो बेजान हुए है ... 

तुम से मिलकर यूँ मिलना 
उस पर क्यूँ -है ये बिछड़ना 
तुझसे हम क्या ये बिछड़े 
कितने पशेमान हुए है ... 

तुझको ख्वाबो में मिलना 
फिर क्यूँ नींदों का खुलना
फिर दिन-दिन भर रातें जागकर 
ये ख्वाब भी -परेशान हुए है !

कहता है दिल ये मेरा
ख्वाहिश पे क्यूँ है पहरा 
मर के यूँ जी न पाएंगे 
कि ख़ुदा नहीं  -फ़क़त इंसान हुए है !







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