जब से अनजान हुए है
हम तो बेजान हुए है ...
तुम से मिलकर यूँ मिलना
उस पर क्यूँ -है ये बिछड़ना
तुझसे हम क्या ये बिछड़े
कितने पशेमान हुए है ...
तुझको ख्वाबो में मिलना
फिर क्यूँ नींदों का खुलना
फिर दिन-दिन भर रातें जागकर
ये ख्वाब भी -परेशान हुए है !
कहता है दिल ये मेरा
ख्वाहिश पे क्यूँ है पहरा
मर के यूँ जी न पाएंगे
कि ख़ुदा नहीं -फ़क़त इंसान हुए है !
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